नैतिकता खंड
उत्तर- 1- पवित्र क़ुरआन से, महान अल्लाह ने कहा है: (إِنَّ هَذَا الْقُرْآَنَ يَهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَمُ) "निस्संदेह यह कुरआन वह रास्ता दिखाता है जो बहुत ही सीधा है"। [सूरा अल-इस्रा: 9] 2- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत से, जैसा कि आपने फरमाया है: निश्चित रूप से मुझे अच्छे आचरण को पूर्ण रूप देने हेतु भेजा गया है''। इसे अह़मद ने रिवायत किया है।
उत्तर- एहसानः सदा यह ध्यान रखना है कि अल्लाह हमारी निगरानी कर रहा है, तथा सृष्टियों की भलाई एवं उनपर उपकार करने में लगे रहना है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है: अल्लाह ने भलाई को हर एक चीज़ पर लिख दिया है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
एहसान के रूप:
- महान अल्लाह की इबादत में एहसान, और वह है उसकी इबादत में मुख़्लिस़ तथा निष्ठावान होना।
- माता-पिता के साथ कथन एवं कर्म के द्वारा एहसान।
- रिश्तेदारों एवं सगे-संबंधियों पर एहसान।
- पड़ोसी पर एहसान।
- अनाथों एवं ग़रीबों पर एहसान।
- आपके साथ बुरा करने वाले पर एहसान।
- बात के द्वारा एहसान।
- बहस व चर्चा में एहसान।
- जानवर पर एहसान।
उत्तर-
1- अल्लाह तआला के अधिकारों की सुरक्षा करने की अमानत:
इसके कुछ रूप ये हैं: इबादतें जैसे नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज्ज इत्यादि, जिन्हें अल्लाह ने हम पर फ़र्ज़ किया है, उनको अदा करने में अमानत का ध्यान रखना।
2- बंदा के अधिकारों की सुरक्षा में अमानत:
* लोगों के सम्मान की सुरक्षा।
* उनके मालों की सुरक्षा।
* उनकी जानों की सुरक्षा।
* उनके भेदों एवं हर वह चीज़ जो वे आपके पास अमानत के तौर पर रखें, उनकी सुरक्षा।
अल्लाह तआला ने सफल होने वालों के गुणों का उल्लेख करते हुए कहा है: (وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ) ''और जो अपनी अमानतों की सुरक्षा तथा वचन का पालन करने वाले हैं''। [सूरा अल-मोमिनून: 8]
उत्तर- बिल्कुल वास्तविकता के अनुरूप ख़बर देने या जैसा है वैसा ही बताने को सच कहा जाता है।
उसके कुछ रूप ये हैं:
* लोगों के साथ बात करने में सच कहना।
* वचन निभाना।
* हर बात व काम में सच्चा होना।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: सच्चाई नेकी की ओर ले जाती है, और नेकी जन्नत की ओर, और आदमी हमेशा सच बोलता रहता है यहां तक कि वह सच्चा बोलने वाला ही बन जाता है''। बुख़ारी एवं मुस्लिम
उत्तर- झूठ, जो वास्तविकता के विपरीत हो, उन्हीं में से लोगों के साथ झूठ बोलना, वचन न निभाना तथा झूठी गवाही देना है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है: "झूठ पाप का और पाप जहन्नम का मार्ग दिखाता है। एक इंसान, झूठ बोलता रहता है और झूठ को जीता रहता है, यहाँ तक कि अल्लाह के पास 'झूठा' लिख दिया जाता है"। बुख़ारी एवं मुस्लिम नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: मुनाफ़िक़ (पाखंडी) की तीन निशानियाँ हैं: ''-उनमें से एक यह बताया कि- जब बात करे तो झूठ बोले और जब वचन दे तो वचन न निभाए''। बुख़ारी एवं मुस्लिम
उत्तर- - अल्लाह तआला के अनुपालन पर धैर्य।
- गुनाह न करने पर धैर्य।
कष्टदायक भाग्यों (तक़दीरों) पर धैर्य, और हर हाल में अल्लाह की प्रशंसा करना।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلصَّـبِرِينَ) ''अल्लाह तआला धैर्य रखने वालों से मुहब्बत करता है''। [सूरा आले-इमरान: 146] तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: मोमिन का मामला भी बड़ा अजीब है। उसके हर काम में उसके लिए भलाई है। जबकि यह बात मोमिन के सिवा किसी और के साथ नहीं है। यदि उसे ख़ुशहाली प्राप्त होती है और वह शुक्र करता है, तो यह भी उसके लिए बेहतर है, और अगर उसे तकलीफ़ पहुँचती है और सब्र करता है, तो यह भी उसके लिए बेहतर है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- यह अल्लाह के अनुपालन पर सब्र न करना, गुनाह को त्यागने पर सब्र न करना तथा भाग्यों पर रोष व्यक्त करना, चाहे बातों से हो या हरकतों से।
उसके प्रकारों में से है:
* मौत की तमन्ना करना।
* गालों एवं कपोलों पर मारना।
* कपड़ा फाड़ना।
*अपने अवसाद को व्यक्त करना।
* अपने हलाक होने की दुआ करना।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: निश्चय ही बड़ा बदला बड़ी परीक्षा के साथ है। जब अल्लाह किसी समुदाय से प्रेम करता है, तो उसकी परीक्षा लेता है। अतः, जो अल्लाह के निर्णय से संतुष्ट रहेगा, उससे अल्लाह प्रसन्न होगा और जो असंतुष्टी दिखाएगा, उससे अल्लाह नाराज रहेगा''। इसे तिरमिज़ी और इब्ने माजह ने रिवायत किया है।
उत्तर- हक़ एवं भलाई के आधार पर लोगों के साथ सहयोग करना।
सहयोग के प्रकार:
* अधिकार वाले का अधिकार लौटाने में सहयोग।
* अत्याचार को रोकने में सहयोग।
* लोगों और ग़रीबों की ज़रूरतें पूरी करने में सहयोग।
* हर भलाई के काम में सहयोग।
* गुनाह तथा तकलीफ़ पहुँचाने या दुश्मनी के कामों में सहयोग न करना।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः وَتَعَاوَنُوا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوَى وَلَا تَعَاوَنُوا عَلَى الْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ) الْعِقَابِ) ''नेकी और तक़वा में एक दूसरे की सहायता करते रहो और गुनाह तथा अन्याय में मदद न करो ओर अल्लाह तआला से डरते रहो निस्संदेह अल्लाह तआला कठिन यातना देने वाला है''। [सूरा अल-माइदा: 2] नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिए भवन की तरह है, जिसकी एक ईंट दूसरी ईंट को ताक़त प्रदान करती है''। बुख़ारी एवं मुस्लिम और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: "एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है। इसलिए न वो उसपर ज़ुल्म करे और न ही उसे ज़ुल्म के हवाले करे। जो आदमी अपने भाई की ज़रूरत पूरी करने में लगा रहता है, अल्लाह उसकी मुराद पूरी करने में लगा रहता है, और जो आदमी किसी मुसलमान की मुसीबत दूर करता है, अल्लाह क़यामत के दिन उसकी मुसीबत दूर करेगा, और जो आदमी मुसलमान का दोष छुपाएगा, क़यामत के दिन अल्लाह उसके दोषों को छुपाएगा"। बुख़ारी एवं मुस्लिम
उत्तर- 1- अल्लाह से हया, और वह इस प्रकार कि उस पाक अल्लाह की अवज्ञा न करना।
2- लोगों से हया, इनमें से अश्लील और फ़िजूल बातों को छोड़ना और निजी अंगों को खुला न छोड़ना शामिल है।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: ईमान की सत्तर से कुछ अधिक -साठ से कुछ अधिक- शाखाएँ हैं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ शाखा 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहना है, जबकि सबसे छोटी शाखा रास्ते से कष्टदायक वस्तु को हटाना है, तथा हया भी ईमान की एक महान शाखा है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- बड़ों पर कृपा करना एवं उनका सम्मान करना।
- छोटों एवं बच्चों पर दया करना।
- निर्धनों, ग़रीबों एवं ज़रूरतमंदों पर दया करना।
- जानवर पर दया करना, कि उसे खाना देना और कष्ट न देना।
जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है: ईमान वालों का उदाहरण, उनके एक-दसरे से प्रेम, दया और करुणा में, शरीर की तरह है कि जब उसका कोई अंग तकलीफ़ में होता है, तो पूरा शरीर जागने एवं बुख़ार की तकलीफ़ में उसके साथ होता है''। बुख़ारी एवं मुस्लिम अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: दया करने वालों पर रहमान (अल्लाह) दया करता है। धरती वालों पर दया करो, आकाश वाला तुम पर दया करेगा''। इस हदीस को अबू दावूद और तिरमिज़ी ने रिवायत किया है।
उत्तर: - अल्लाह तआला से मुहब्बत।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَالَّذِينَ آَمَنُوا أَشَدُّ حُبًّا لِلَّهِ) ''और ईमान वाले अल्लाह से अत्यंत मुहब्बत करते हैं''। [सूरा अल-बक़रा: 165]
- रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मुहब्बत।
आप -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने फ़रमाया: क़सम है उस अल्लाह की जिसके हाथ में मेरी जान है, तुम में से कोई उस समय तक (पूर्ण) मोमिन नहीं हो सकता है जब तक कि उसके निकट मैं उसके माता-पिता एवं औलाद से अधिक प्रिय न हो जाऊँ''। इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।
मोमिनों से मुहब्बत, और इस तरह कि उनके लिए वही पसंद करे जो अपने लिए पसंद करता है।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: "कोई व्यक्ति उस समय तक (मुकम्मल) मोमिन नहीं हो सकता जब तक कि वह अपने भाई के लिए वही चीज न चाहे जो अपने लिए चाहता है"। इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।
उत्तर- जो लोगों के साथ मिलते समय चेहरे की चमक, प्रसन्नता, मुस्कुराहट और नरमी लिए हुए हो तथा लोगों से भेंट करते समय ख़ुशी प्रकट करे।
इसका उल्टा लोगों के सामने मुंह बिसूरने को कहते हैं, जिससे लोग भागते हैं।
लोगों के साथ हंस कर मिलने के महत्व पर बहुत सारी हदीस़ें आई हैं, चुनाँचे हज़रत अबू ज़र्र -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है, वह कहते हैं कि मुझ से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: किसी भी नेकी के काम को कदापि तुच्छ न जानो, चाहे इतना ही क्यों न हो कि तुम अपने भाई से हँसते हुए मिलो''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: अपने भाई के सामने मुस्कुराना भी स़दक़ा है''। इसे तिर्मिज़ी ने रिवायत किया है।
उत्तर- यह दूसरों से नेमत के ख़त्म हो जाने की अभिलाषा रखना या दूसरों को नेमत मिलने को घृणा की दृष्टि से देखना है।
अल्लाह तआला का फ़रमान है: (وَمِنْ شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ) ''ईर्ष्या करने वाले की ईर्ष्या से तेरी शरण माँगता हूँ''। [सूरा अल-फ़लक़: 5]
अनस बिन मालिक -रज़ियल्लाहु अन्हु- से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: एक दूसरे से नफ़रत न करो, न हसद करो, और न ही मुंह फेरो, और सब -अल्लाह के बंदे- भाई भाई हो जाओ''। इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- यह अपने मुस्लिम भाई का मज़ाक उड़ाना और उससे नफ़रत करना है। तथा यह जायज़ नहीं है।
अल्लाह तआला ने इससे मना करते हुए कहा है: (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا يَسْخَرْ قَومٌ مِنْ قَوْمٍ عَسَى أَنْ يَكُونُوا خَيْرًا مِنْهُمْ وَلَا نِسَاءٌ مِنْ نِسَاءٍ عَسَى أَنْ يَكُنَّ خَيْرًا مِنْهُنَّ وَلَا تَلْمِزُوا أَنْفُسَكُمْ وَلَا تَنَابَزُوا بِالْأَلْقَابِ بِئْسَ الِاسْمُ الْفُسُوقُ بَعْدَ الْإِيمَانِ وَمَنْ لَمْ يَتُبْ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ) "हे लोगो जो ईमान लाए हो! हँसी न उड़ाए कोई जाति किसी अन्य जाति की। हो सकता है कि वह उनसे अच्छी हो और न नारीयां अन्य नारियों की। हो सकता है कि वह उनसे अच्छी हों तथा आक्षेप न लगाओ एक-दूसरे को और न किसी को बुरी उपाधि दो। बुरा नाम है अपशब्द ईमान के पश्चात्, और जो क्षमा न माँगें, तो वही लोग अत्याचारी हैं''। [सूरा अल-हुजुरात: 11]
उत्तर- विनम्रता यह है कि इंसान अपने आपको दूसरे से उच्च न समझे, न वह लोगों को कम आंके और न ही सत्य का इंकार करे।
महान अल्लाह ने कहा है: (وَعِبَادُ الرَّحْمَنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا) ''अल्लाह के बन्दे धरती पर नरमी के साथ चलते हैं''। [सूरा अल-फ़ुरक़ान: 63] अर्थात विनम्र होकर चलते हैं। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: जो कोई अल्लाह के कारण विनम्र हो जाता है तो अल्लाह तआला उसे ऊँचा कर देता है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: अल्लाह तआला ने मेरी ओर वह़्य की है कि तुम लोग विनम्रता धारण करो, यहाँ तक कि कोई किसी को घमंड न दिखाए और न कोई किसी पर अत्याचार करे''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- 1- सत्य के विरूद्ध घमंड, वह इस प्रकार कि सत्य को नकार देना एवं उसे स्वीकार न करना।
2- लोगों के विरुद्ध घमंड, और वह इस प्रकार कि उन्हें कम आंकना, तुच्छ समझना एवं उनका मज़ाक़ उड़ाना।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: वह व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं करेगा, जिस के दिल में रत्ती बराबर भी अहंकार होगा'' तो एक आदमी ने कहा: उस व्यक्ति का क्या जो चाहता है कि उसके पास अच्छे कपड़े हों अच्छे जूते हों? तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: अल्लाह सुन्दर है एवं सुन्दरता को पसंद करता है, और घमंड तो यह है कि (अपने आपको बड़ा समझते हुए) सत्य का इंकार कर दे एवं लोगों को कमतर समझे''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
- ''हदीस़ के शब्द ''बत़रुल हक़'' का अर्थ है, हक़ अर्थात सत्य को रद्द कर देना।
- और ''ग़म्त़ुन नासि" का अर्थ है लोगों को तुच्छ समझना।
- अच्छा कपड़ा पहनना या अच्छा जूता पहनना घमंड नहीं है।
उत्तर- बेचने एवं ख़रीदने में धोखा, और यह सामान के अवगुण को छुपाना है।
- इल्म सीखने में धोखा, जैसे कि छात्रों का परीक्षाओं में धोखा करना।
- बातों में धोखा, जैसे कि झूठी गवाही देना।
- कही हुई बात या लोगें के साथ जिसपर सहमत हों, उसे पूरा न करना।
धोखा से मनाही के बारे में यह हदीस़ स्पष्ट है कि एक बार नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अनाज के ढ़ेर से होकर गुज़रे, आपने अपना हाथ उसमें घुसाया तो आपकी उंगलियाँ भीग गईं, तो आपने फरमाया: ''हे इस अनाज के मालिक, यह क्या है''? तो उसने कहा: इसमें बारिश पड़ गई थी ऐ अल्लाह के रसूल, तो आपने फरमाया: क्या तुम इसे ऊपर नहीं रख सकते थे ताकि लोग इसे देख लेते?! जो धोखा दे वह मुझ में से नहीं है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
हदीस़ में उल्लेखित शब्द ''अस़-स़ुब्रा'' का अर्थ है अनाज का ढ़ेर।
उत्तर- यह अपने मुस्लिम भाई के बारे में उसके पीठ पीछे वह कहना है जिसे वह नापसंद करे।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَلَا يَغْتَبْ بَعْضُكُمْ بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَنْ يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَحِيمٌ) ''तुम में से कोई किसी की ग़ीबत न करे, क्या तुम में से कोई पसंद करेगा कि वह अपने मुर्दे भाई का मांस खाए, तुम अवश्य इसे नापसंद करोगे, और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह बड़ा क्षमा स्वीकार करने वाला एवं बड़ा दयालु है''। [सूरा अल-हुजुरात: 12]
उत्तर- भलाई का काम या जो काम करना इंसान पर वाजिब है, उसे बोझल मन से करना।
जैसे कि: वाजिब कामों को करने में सुस्ती दिखाना।
उच्च एवं महान अल्लाह ने कहा है: (إِنَّ الْمُنَافِقِينَ يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَهُوَ خَادِعُهُمْ وَإِذَا قَامُوا إِلَى الصَّلَاةِ قَامُوا كُسَالَى يُرَاءُونَ النَّاسَ وَلَا يَذْكُرُونَ اللَّهَ إِلَّا قَلِيلًا) “बेशक मुनाफ़िक़ लोग अल्लाह से चालबाज़ियाँ कर रहे हैं और वह उन्हें इस चालबाज़ी का बदला देने वाला है, और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं तो बड़ी काहिली की हालत में खड़े होते हैं, सिर्फ़ लोगों को दिखाते हैं, और अल्लाह को याद तो यूँ ही नाम के वास्ते करते हैं”। [सूरा अल-निसा: 142]
मुसलमानों को सुस्ती, काहिली, ग़फ़लत एवं आलस से बाहर आना चाहिए एवं इस दुनिया में हर उस काम व अमल के लिए कोशिश करनी चाहिए जिससे अल्लाह राज़ी हो।
उत्तर- 1- प्रशंसनीय क्रोध: जब काफ़िर एवं पाखंडी इत्यादि लोग अल्लाह की वर्जनाओं का उल्लंघन करे, उस समय जो ग़ुस़्स़ा आए तो उसे प्रशंसनीय ग़ुस़्स़ा कहते हैं।
2- निंदनीय क्रोध: यह ऐसा क्रोध है जो इंसान को वह कहने या करने पर उकसाए जो उचित नहीं है।
निंदनीय क्रोध का इलाज:
वुज़ू।
यदि खड़े हों तो बैठ जाएं और यदि बैठे हों तो लेट जाएं।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की वसीयत ''क्रोधित मत हो'' पर अमल करें।
गुस्सा के समय अपने आप पर क़ाबू रखें।
बहिष्कृत शैतान से अल्लाह की शरण माँगें।
चुप हो जाएं।
उत्तर- लोगों के राज़ की बातों या जिसे वह छुपाते हैं, उन बातों के पीछे पड़ना और उन्हें सरे आम लाना।
उसके हराम प्रकारों में से हैं:
- घरों में लोगों की ढकी-छुपी बातों की जानकारी प्राप्त करना।
- लोगों की जानकारी के बिना उनकी बातों को सुनना।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَلَا تَجَسَّسُوا ...) “और तुम जासूसी न करो”। [सूरा अल-हुजुरात: 12]
उत्तर- इस्राफ़: अर्थात फ़िजूल ख़र्ची, धन को बिना ज़रूरत के ख़र्च करना है।
इसके विपरीत कंजूसी है, जो ज़रूरत पर भी ख़र्च न करने को कहते हैं।
सही रास्ता इन दोनों के बीच है, और यह कि मुसलमान को खुले हाथ वाला होना चाहिए।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَٱلَّذِينَ إِذَاۤ أَنفَقُوا لَمۡ يُسۡرِفُوا وَلَمۡ يَقۡتُرُوا وَكَانَ بَيۡنَ ذَ لِكَ قَوَامًا) ''तथा जो खर्च करते समय फ़िज़ूल-खर्ची नहीं करते और न कंजूसी करते हैं। और वह इसके बीच संतुलित राह अपनाते हैं''। [सूरा अल-फ़ुरक़ान: 67]
उत्तर- कायरता यह है कि इंसान उससे डरे जिससे डरना उचित नहीं है।
जैसे कि सत्य बात कहने एवं बुराई का इंकार करने से डरना।
बहादुरी या साहस: और वह हक़ के लिए आगे बढ़ना है, जैसे कि इस्लाम एवं मुसलमानों की रक्षा के लिए जिहाद के मैदान में आगे बढ़ना।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी दुआ में कहा करते थे: ऐ अल्लाह! मैं कायरता से तेरी शरण माँगता हूँ''। तथा अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: शक्तिशाली मोमिन कमज़ोर मोमिन के मुकाबले में अल्लाह के समीप अधिक बेहतर तथा प्रिय है, जबकि भलाई दोनों के अंदर मौजूद है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- किसी को लानत करना या गाली देना।
- यह कहना कि अमुक व्यक्ति ''जानवर'' है, या इसी प्रकार के शब्द।
- निजी अंगों का उल्लेख ग़लत एवं घटिया शब्दों के साथ करना।
- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इन सभी बातों से मना फ़रमाया है, आप का कथन हैः मोमिन ताना देने वाला, लानत करने वाला, बदज़ुबान और फ़िजूल बकने वाला नहीं होता है''। इसे तिरमिज़ी और इब्ने हिब्बान ने रिवायत किया है।
उत्तर- 1- अल्लाह से दुआ करना कि वह उन्हें अच्छे आचरण से नवाज़ दे एवं उसको अपनाने में उनकी मदद करे।
2- अल्लाह तआला को हमेशा ध्यान में रखना तथा इस बात का सदेव ध्यान रहे कि अल्लाह तआला देख रहा है, सुन रहा है और वह सब कुछ जानता है।
3- अच्छे आचरण के प्रतिफल को याद रखना, कि यह जन्नत में प्रवेश करने का कारण है।
4- बुरे व्यवहार के बुरे अंजाम को सामने रखना, कि यह जहन्नम में ले जाने का कारण है।
5- अच्छा व्यवहार अल्लाह की मुहब्बत एवं सृष्टि की मुहब्बत का कारण है, जबकि बुरा व्यवहार अल्लाह की नफ़रत एवं सृष्टि की नफ़रत का कारण है।
6- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की जीवनी पढ़ना एवं उसका अनुसरण करना।
7- अच्छे लोगों के साथ रहना एवं बुरे लोगों से बचना।