फ़िक़्ह खंड
उत्तर- तहारत: नापाकी (अपवित्रता) को ख़त्म करने एवं गंदगी को दूर करने को कहते हैं।
गंदगी से पाकी: इसका अर्थ है मुसलमान अपने शरीर, कपड़े, जगह या नमाज़ पढ़ने के स्थान में पड़ी गंदगियों को दूर करे।
नापाकी से पाकी: यह होता है पाक पानी के द्वारा वुज़ू या स्नान करके, या यह प्राप्त होता है तयम्मुम के द्वारा उसके लिए जिसके पास पानी न हो या जो पानी का सेवन करने में असमर्थ हो।
उत्तर- नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया है: "जब मुस्लिम या मोमिन बंदा वुज़ू करता है और अपना चेहरा धोता है, तो उसके चेहरे से वह सारे गुनाह पानी के साथ या पानी की अंतिम बूँद के साथ निकल जाते हैं, जो उसने अपनी आँखों से देखकर किया था। फिर जब वह अपने हाथों को धोता है, तो पानी के साथ या पानी की अंतिम बूँद के साथ उसके हाथ के वह सारे गुनाह निकल जाते हैं, जो उसके हाथों के पकड़ने से हुए थे। फिर जब वह अपने पैरों को धोता है, तो पानी के साथ या पानी की अंतिम बूँद के साथ उसके पैरों से वह सारे गुनाह निकल जाते हैं, जिनकी ओर उसके पाँव चलकर गए थे। यहाँ तक कि वह गुनाहों से पवित्र होकर निकलता है''। इसे मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- दोनों हथेलियों को तीन बार धोया जाए,
तीन बार कुल्ला किया जाए एवं नाक में पानी लेकर उसको झाड़ा जाए,
कुल्ला करने का नियम यह है कि मुँह में पानी लेकर, उसे हिलाया जाए, फिर उसे फेंक दिया जाए,
इस्तिंशाक़ अर्थात नाक में पानी लेने का नियम यह है कि दायां हाथ से पानी को हवा के द्वारा नाक के अंदर लिया जाए,
तथा इस्तिंस़ार अर्थात नाक झाड़ने का नियम यह है कि पानी को नाक से बायां हाथ के द्वारा झाड़ कर फेंक दिया जाए।
पूरे चेहरे को तीन बार धोया जाए।
फिर दोनों हाथों को कोहनियों समेत तीन बार धोना है।
फिर सर का मसह करना है, और वह इस तरह कि अपने दोनों हाथों को सर के अगले हिस्से से पिछले हिस्से तक ले जाएं एवं फिर उसी प्रकार से लौटाएं, और दोनों कानों का मसह करें।
फिर दोनों पैरों को टखना समेत तीन बार धोएं।
यह वुज़ू का मुकम्मल तरीक़ा है, यही बुख़ारी एवं मुस्लिम की हदीस़ों में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित है, जिन्हें उस़मान एवं अब्दुल्लाह बिन ज़ैद (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) आदि ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है। बुख़ारी आदि में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह भी साबित है कि; "आपने एक-एक बार वुज़ू किया, और दो-दो बार", अर्थात आपने वुज़ू के सभी अंगों को एक-एक बार या दो-दो बार धोया।
उत्तर- यह वो चीज़ें हैं जिनके बिना वुज़ू सही नहीं होता है, यदि उनमें से एक भी छोड़ा जाए:
1- चेहरा का धोना, इसी के अन्तर्गत कुल्ली करना और नाक में पानी चढाना है|
2- फिर दोनों हाथों को कुहनियों समेत धोना है।
3- सर का मसह करना, और उसी में कान का मसह भी शामिल है।
4- टखने समेत पैर धोना।
5- क्रमानुसार अंगों को धोना, जैसे चेहरा धोया जाए, फिर दोनों हाथ, फिर सर का मसह और अंतिम में पैर धोये जाएं।
6- निरंतरता: अर्थात एक साथ ही वुज़ू पूर्ण किया जाए, अंगों को धोने के बीच इतना अंतराल न हो कि पहले धोए हुए अंग सूख जाएं।
जैसे आधा वुज़ू कर के छोड़ दिया जाए एवं शेष आधे को दूसरे समय किया जाए, तो इस प्रकार वुज़ू सही नहीं होता है।
उत्तर- वुज़ू की सुन्नत का मतलब यह है कि यदि उसको किया जाए तो अधिक नेकी एवं प्रतिफल है, और यदि छोड़ दिया जाए तो कोई गुनाह नहीं है, वुज़ू सही हो जाएगा।
1- तस्मिया अर्थात बिस्मिल्लाह कहना,
2- दातून करना,
3- दोनों हथेलियों को धोना,
4- उंगलियों के बीच खिलाल करना,
5- अंगों को दो या तीन बार धोना,
6- दाएं से शुरू करना,
7- वुज़ू के बाद दुआ पढ़नाः "أشْهَدُ أنْ لا إلهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، وأشهدُ أنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ" अश्हदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़्दहू ला शरीक् लहू, व अश्हदु अन्ना मुह़म्मदन अब्दुहु व रसूलुहू (मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं है, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, तथा गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उसके बंदे और रसूल हैं।)
8- और वुज़ू के बाद दो रक्अत नमाज़ पढ़ना।
उत्तर- पहली शर्त यह है कि दोनों मोज़े को पवित्र अवस्था में पहना जाए, अर्थात वुज़ू के बाद।
2- दूसरी शर्त यह है कि मोज़ा पाक हो, नापाक पर मसह करना सही नहीं है।
3- तीसरी शर्त यह है कि वुज़ू में जितनी जगह को धोना ज़रूरी होता है, उतनी जगह को मोज़ा ढ़ांपे रखे।
4- निर्धारित समय तक ही मसह किया जाए, जैसा कि (घर पर) ठहरे रहने वाले के लिए एक दिन एवं एक रात, तथा मुसाफिर के लिए तीन दिन एवं तीन रातें।
उत्तर- 1- मसह की अवधि का ख़त्म हो जाना, शरई तौर पर मसह की निर्धारित अवधि के समाप्त हो जाने के बाद मोज़े पर मसह करना सही नहीं है, ठहरे व्यक्ति के लिए एक दिन एवं एक रात, तथा मुसाफिर के लिए तीन दिन एवं तीन रातें।
2- मोज़े का उतार देना, यदि इंसान दोनों मोज़ों में से किसी एक को भी उतार दे तो उनपर मसह नहीं किया जा सकता है।
उत्तर- नमाज़ के चौदह स्तंभ हैं, और वह इस प्रकार हैं:
पहला: क्षमता रखने वाले पर फ़र्ज़ नमाज़ में खड़ा होना,
तकबीर-ए-तहरीमा, और यह ''अल्लाहु अकबर'' कहना है,
सूरा फ़ातिहा पढ़ना,
रुकुअ, (जिसमें) अपनी पीठ को सपाट रखे और अपना सिर आगे की ओर रखे,
रुकूअ से सिर उठाना,
सीधा खड़ा होना,
सज्दा, तथा सज्दा की जगह में अपनी पेशानी, नाक, दोनों हथेलियों, घुटनों, और दोनों पैर की उंगलियों के किनारों को टिकाए।
सज्दे से सिर उठाना,
दोनों सज्दों के बीच बैठना,
सुन्नत यह है किः बायां पैर को बिछाए एवं दायां पैर को खड़ा रखे, तथा उसे क़िबला रुख रखे।
शांति, और यह नमाज़ के हर काम में सुकून का होना है।
अंतिम तशह्हुद,
उसके लिए बैठना,
और दोनों सलाम, और वह यह है कि दो बार ''अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह'' कहा जाए।
स्तंभों के क्रम का ख़्याल -जैसा कि मैं ने उल्लेख किया-, यदि जान बूझ कर रुकूअ से पहले सज्दा करे, तो नमाज़ बात़िल (व्यर्थ) हो जाएगी, और यदि भूल कर करे तो उसके लिए लौटकर रुकूअ करना, फिर सजदा करना वाजिब है।
उत्तर- नमाज़ की अनिवार्य चीज़ें आठ हैं, और वह इस प्रकार हैं:
1- तकबीर-ए-तहरीमा के अलावा दूसरी तकबीरें,
2- इमाम और अकेले के लिए ''समिअल्लाहु लिमन हमिदह'' कहना,
3- ''रब्बना व लकल हम्द'' कहना,
4- रुकूअ में (कम से कम) एक बार ''सुब्हान् रब्बी अल-अज़ीम'' कहना,
5- सज्दों में (कम से कम) एक बार ''सुब्हान रब्बी अल-आला'' कहना,
6- दोनों सज्दों के बीच ''रब्बिग़्फ़िर ली'' कहना,
7- पहला तशह्हुद
8- और पहले तशह्हुद के लिए बैठना।
उत्तर- नमाज़ की ग्यारह सुन्नतें हैं, और वह इस प्रकार हैं:
1- तकबीर-ए-तहरीमा कहने के बाद नमाज़ शुरू करने की दुआ पढ़ेंगे: ''सुब्हानका अल्लाहुम्मा व बि हम्दिका, व तबारकस्मुका, व तआला जद्दुका, व ला इलाहा ग़ैरुका''।
2- तअव्वुज़ अर्थात ''अऊज़ुबिल्लाहि मीनश् शैतानिर रजीम'' पढ़ेंगे।
3- बस्मला अर्थात ''बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम'' पढ़ेंगे।
4- आमीन कहना,
5- सूरह फ़ातिहा के बाद कोई दूसरा सूरह पढ़ना,
6- इमाम का आवाज़ के साथ क़ुरआन पढ़ना,
तहमीद (अर्थातः रब्बना व लक् अल्ह़मद) के बाद ''मिल्अस् समावाति व मिल्अल अरज़ि, व मिल्अ मा शिअ्त मिन शयइन बादु'' कहना,
8- रुकूअ की तसबीह में (एक बार से अधिक) जितना ज़्यादा पढ़ा जाए, दो बार, तीन बार या उससे अधिक बार,
9- सज्दों की तसबीह में (एक बार से अधिक) जितनी बार अधिक पढ़ा जाए,
10- दोनों सज्दों के बीच ''रब्बिग़्फ़िर ली'' को जितनी अधिक बार पढ़ा जाए,
11- अंतिम तशह्हुद में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर तथा उनकी औलाद पर शांति एवं बरकत की दुआ भेजना, फिर उसके बाद दुआ करना।
चौथी बात, अफ़आल अर्थात कार्यों में सुन्नत, जिन्हें हैअत अर्थात कैफीयत कहा जाता है।
1- तकबीर-ए-तहरीमा के साथ दोनों हाथों को उठाना,
2- तथा रुकूअ करते समय,
3- और रुकूअ से उठते समय भी हाथ उठाना,
4- उसके बाद उसे छोड़ देना,
5- दायें हाथ को बायें हाथ पर रखना,
6-अपनी दृष्टि को सज्दे के स्थान पर रखना,
7- ख़ड़े होते हुए दोनों पैरों के बीच दूरी रखना,
8- रुकूअ में अपने दोनों घुटनों को अपनी उंगलियों को फैलाते हुए पकड़ना, पीठ सीधी रखना एवं सिर आगे की ओर रखना,
9- सज्दों में सज्दों के अंगों को ज़मीन पर टिकाना एवं सज्दों की जगह को छूना,
10- अपने दोनों बाज़ू को अपने दोनों पहलू (पसली) से, पेट को रानों से तथा रानों को पिंडलियों से अलग रखना, अपने दोनों घुटनों के बीच दूरी रखना, पैरों को खड़ा रखना, अपनी उंगलियों के अंदरूनी हिस्से को अलग-अलग करते हुए धरती पर बिछाना तथा दोनों हाथों को गर्दन के बराबर फैला कर रखना इस अवस्था में कि दोनों हाथों की उंगलियों सटी हुई हों।
11- दोनों सज्दों के बीच की बैठक एवं पहले तशह्हुद में इफ़तिराश (अपने बायां पैर को चूतड़ के नीचे रखना एवं उसपर बैठना, और दायां पैर को खड़ा रखना) करना एवं दूसरे तशह्हुद में तवर्रुक (अर्थात बायां पैर को दायें पैर के नीचे से आगे निकाल कर ज़मीन पर बैठना, इस हाल में कि दायां पैर खड़ा हो) करना।
12- दोनों सज्दों के बीच एवं तशह्हुद में दोनों हाथों को दोनों रानों के ऊपर फैला कर एवं उंगलियों को मिला करके रखना, परंतु तशह्हुद की स्थिति में कनिष्ठा एवं अनामिका उंगलियों द्वारा मुट्ठी बना लेना,एवं अंगूठा एवं मध्यमा उंगलियों का दायरा बनाना तथा तर्जनी अर्थात गवाही देने वाली उंगली से अल्लाह का ज़िक्रव् करते समय इशारा करना,
13- सलाम फेरते समय दायें एवं बाएं दोनों ओर देखना।
उत्तर- नमाज़ पढ़ने का नियम:
1- अपने पूरे शरीर के साथ सीधी तरह क़िबला रुख हो, बिना किसी विचलन या मोड़ के।
2- फिर ज़बान से कहे बिना उस नमाज़ की दिल में निय्यत करना जो नमाज़ वह पढ़ना चाहता है।
3- फिर तकबीर-ए-तहरीमा अर्थात ''अल्लाहु अकबर'' कहते हुए अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधों तक उठाना।
4- फिर अपनी छाती के ऊपर अपने दाहिने हाथ की हथेली को अपने बाएं हाथ की हथेली के ऊपर रखे।
5- फिर नमाज़ शुरू करने की दुआ पढ़े, और कहे: अल्लाहुम्मा बाइद बैनी व बैना खतायाया कमा बाअत्ता बैनलमशरिक़ि वलमग़रिबि,अल्लाहुम्मा नक़्क़िनी मिन खतायाया कमा युनक़्क़स् स़ौबुल अब्यज़ु मिनद्दनसि,अल्लाहुम्मग्सिलनी मिन खतायाया बिलमाइ वस्सल्जि वल्बरद्" (हे अल्लाह! मेरे और मेरे पापों के मध्य वैसी दूरी करदे,जैसी तूने पूर्व और पश्चिम के बीच दूरी कर दी है, हे अल्लाह! मुझे पापों से ऐसे साफ सुथरा करदे जिस प्रकार सफ़ेद कपड़ा मैल कुचैल से साफ़ किया जाता है, हे अल्लाह! मुझे मेरे पापों से जल, बर्फ और ओले के द्वारा धो दे)।
या यह दुआ कहेः ''सुब्हानका अल्लाहुम्मा व बि हम्दिका, व तबारकस्मुका, व तआला जद्दुका, व ला इलाहा ग़ैरुका''। (तू पवित्र है ऐ अल्लाह! हम तेरी प्रशंसा करते हैं, तेरा नाम बरकत वाला है, तेरी महिमा उच्च है तथा तेरे सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है)।
6- फिर तअव्वुज़ पढ़े अर्थात यों कहेः अऊज़ुबिल्लाहि मिनश् शैतानिर रजीम'' (मैं बहिष्कृत शैतान से अल्लाह की शरण में आता हूं)। 7- फिर बिस्मिल्लाह कहे एवं सूरा फ़ातिहा पढ़े, अर्थात यों कहेः बिस्मिल्लाहिर्रह़मानिर्रह़ीम ("शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु एवं अति कृपावान है।") (الْحَمْدُ للّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ) "सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसारों का रब है। (الرَّحْمـنِ الرَّحِيمِ) "जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है"। (مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ) "जो प्रतिकार (बदले) के दिन का मालिक है"। (إِيَّاكَ نَعْبُدُ وإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ) "(हे अल्लाह) हम तेरी ही उपासना करते हैं तथा तुझ ही से सहायता माँगते हैं"। (اهدِنَــــا الصِّرَاطَ المُستَقِيمَ) "हमें सुपथ (सीधा मार्ग) दिखा"। (صِرَاطَ الَّذِينَ أَنعَمتَ عَلَيهِمْ غَيرِ المَغضُوبِ عَلَيهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ ) "उनका मार्ग, जिनपर तूने पुरस्कार किया, उनका नहीं, जिन पर तेरा प्रकोप हुआ और न ही उनका, जो कुपथ (गुमराह) हो गए''। [सूरा अल-फ़ातिहा: 1-7]
फिर कहेः ''आमीन'' अर्थात: हे अल्लाह! तू क़बूल कर ले।
8- फिर क़ुरआन से जो भी याद हो पढ़े, सुबह की नमाज़ में अधिक क़ुरआन पढ़े।
9- फिर रुकूअ करे, अर्थात अल्लाह के सम्मान में पीठ झुकाए, एवं रुकूअ करते समय तकबीर कहे तथा अपने दोनों हाथों को अपने दोनों कंधों के बराबर उठाए। सुन्नत यह है कि अपनी पीठ को सीधी रखे, सिर को आगे की ओर रखे, एवं अपने दोनों होथों को उनकी उंगलियों को फैलाए हुए दोनों घुटनों पर रखे।
10- रुकूअ में तीन बार कहे: ''سبحان ربي العظيم'' (हे हमारे पाक रब! हम तेरी ही पाकी बयान करते हैं) और यदि ''سبحانك اللهم وبحمدك، اللهم اغفر لي'' (पवित्र है तू ऐ अल्लाह! अपनी प्रशंसा के साथ, हे अल्लाह! तू मुझे क्षमा कर दे) की वृद्धि करे तो उत्तम है।
11- फिर रुकूअ से ''سمع الله لمن حمده'' कहते हुए अपना सर उठाए, और अपने हाथों को अपने दोनों कंधों तक उठाए। परन्तु मुक़्तदी लोग (जो इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे हों) वे ''سمع الله لمن حمده'' न कहें, बल्कि उसके बदले ''ربنا ولك الحمد'' कहें।
12- फिर सर उठाने के बाद कहे: ''ربنا ولك الحمد، ملء السماوات والأرض، وملء ما شئت من شيء بعد'' (ऐ अल्लाह! हमारे रब! तेरी प्रशंसा है, आकाशों के बराबर, ज़मीन के बराबर और इसके बाद तू जो चाहे, उसके बराबर)
13- फिर पहला सज्दा करे, एवं सज्दा करते समय ''अल्लाहु अकबर'' कहे, तथा सात अंगों पर सज्दा करे: पेशानी (ललाट) और नाक, दोनों हथेली, दोनों घुटने तथा दोनों पैर के किनारे। अपने दोनों बाज़ुओं को अपने दोनों किनारों (पहलू, पसली) से दूर रखे, अपने दोनों हाथों को धरती पर न बिछाए, और अपनी उंगलियों के सिरों को क़िबला रुख रखे।
14- और अपने सज्दों में तीन बार कहे: ''سبحان ربي الأعلى'' (हे हमारे उच्च रब! हम तेरी ही पाकी बयान करते हैं) और यदि ''سبحانك اللهم وبحمدك، اللهم اغفر لي'' की वृद्धि करे तो उत्तम है।
15- फिर सज्दा से अपने सर को ''अल्लाहु अकबर'' कहते हुए उठाए।
16- फिर दोनों सज्दों के बीच अपने बायां पैर पर बैठे एवं दायां पैर खड़ा रखे, अपना दायां हाथ घुटना के क़रीब अपने दायें जाँघ पर रखे, अनामिका एवं कनिष्ठा उंगलियों को मुट्ठी के आकर में कर ले, तर्जनी को खड़ी कर ले एवं दुआ कहते हुए उस से इशारा करे, एवं अंगूठा तथा मध्यमा उंगलियों से एक दायरा बनाए। जबकि बायां हाथ बाईं जांघ के घुटने के क़रीब, उंगलियों को फैलाते हुए रखे।
17- दोनों सज्दों के बीच की बैठक में दुआ पढ़ेः वह दुआ इस प्रकार है: "رب اغفر لي وارحمني واهدني وارزقني وعافني" अर्थात, ऐ मेरे रब!, मुझे क्षमा कर दे, मुझपर कृपा कर, मेरा मार्गदर्शन कर, मुझे रोज़ी दे और मुझे कुशल- मंगल रख।
18- फिर पहले सज्दा की तरह दूसरा सज्दा करे, तथा इसमें वही कहे एवं करे जो पहले में कहा तथा किया था, एवं तकबीर कहते हुए सज्दा करे।
19- फिर तकबीर अर्थात अल्लाहु अकबर कहते हुए दूसरे सज्दा से उठे, और पहली रक्अत की तरह ही दूसरी रक्अत पढ़े, नमाज़ शुरू करने की दुआ के सिवा वही कहे एवं करे, जो पहली रक्अत में कहा एवं किया था।
20- फिर दूसरी रक्अत समाप्त करने के बाद तकबीर कहते हुए बैठे, उसी प्रकार जिस प्रकार दोनों सज्दों के बीच बैठा था।
21- इस बैठक में तशह्हुद पढ़े, अतः यों कहे: अत्तहिय्यातो लिल्लाहि, वस्सला-वातो, वत्तैयिबातो, अस्सलामो अलैका अय्युहन्नबिय्यु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू, अस्सलामो अलैना व अला इबादिल्लाहिस्सालिहीन, अश्हदु अल ला इलाहा इल्लल्लाहु, व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू "(हर प्रकार का सम्मान, समग्र दुआ़एँ एवं समस्त अच्छे कर्म व अच्छे कथन अल्लाह के लिए हैं। हे नबी! आपके ऊपर सलाम, अल्लाह की कृपा तथा उसकी बरकतों की वर्षा हो, हमारे ऊपर एवं अल्लाह के भले बंदों के ऊपर भी सलाम की जलधारा बरसे, मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवाय कोई सत्य माबूद (पूज्य) नहीं एवं मुहम्मद अल्लाह के बंदे तथा उस के रसूल हैं)। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा सल्लैता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मद, व अला आले मुहम्मद, कमा बारक्ता अला इब्राहीमा व अला आले इब्राहीम, इन्नका हमीदुम मजीद (हे अल्लाह! मुहम्मद एवं उनकी संतान-संतति पर उसी प्रकार से शांति उतार, जिस प्रकार से तूने इब्राहीम एवं उनकी संतान-संतति पर शांति उतारी थी। निस्संदेह तू प्रशंसा योग्य तथा सम्मानित है। (ऐ अल्लाह!) मुहम्मद तथा उनकी संतान-संतति पर उसी प्रकार से बरकतों की बारिश कर, जिस प्रकार से तूने इब्राहीम एवं उनकी संतान-संतति पर की है। निस्संदेह तू प्रशंसा योग्य तथा सम्मानित है)"। फिर इस दुनिया एवं इस दुनिया के बाद की दुनिया (लोक परलोक) की भलाई में से जो उसे पसंद हो, उसकी अल्लाह से प्रार्थना करे।
22- फिर अपनी दायीं ओर ''السَّلام عليكم ورحمة الله'' कहते हुए सलाम फेरे, और इसी प्रकार से बायीं ओर।
23- यदि नमाज़ तीन या चार रक्अतों वाली हो, तो पहले तशह्हुद के अन्त पर रुक जाएगा, और वह है: ''أشهد أن لا إله إلا الله، وأشهد أن محمداً عبده ورسوله'' तक।
24- फिर ''अल्लाहु अकबर'' कहते हुए उठ जाएगा, एवं अपने दोनों हाथों को दोनों कंधों के बराबर उठायेगा।
25- फिर दूसरी रक्अत की तरह ही शेष नमाजों को पढ़ेगा, परन्तु ध्यान रहे कि इन रक्अतों में केवल सूरा फ़ातिहा ही पढ़ेगा।
26- फिर तवर्रुक करते हुए बैठेगा, और वह इस तरह है कि अपने बायां पैर को दायीं पिंडली के नीचे से निकालेगा, एवं धरती पर चूतड़ टिका कर बैठेगा, और अपने हाथों को जांघों के ऊपर उसी प्रकार से रखेगा जिस प्रकार से पहले तशह्हुद में रखा था।
27- इस बैठक में पूरा तशह्हुद पढ़ेगा।
28- फिर अपनी दायीं ओर ''السَّلام عليكم ورحمة الله'' कहते हुए सलाम फेरेगा, और उसी प्रकार बायीं ओर।
उत्तर- ''أَسْـتَغْفِرُ الله'' (हे अल्लाह! हम तेरी क्षमा चाहते हैं) तीन बार कहे।
फिर कहेः «اللّهُـمَّ أَنْـتَ السَّلامُ، وَمِـنْكَ السَّلام، تَبارَكْتَ يا ذا الجَـلالِ وَالإِكْـرام» ''ऐ अल्लाह! तू ही सुरक्षा तथा शांति का मालिक है और तेरी ही ओर से सुरक्षा एवं शांति प्राप्त होती है। हे प्रताप और सम्मान के आधिपत्य वाले ! तू बड़ी बरकतों वाला है"।
«لا إلهَ إلاّ اللّهُ وحدَهُ لا شريكَ لهُ، لهُ المُـلْكُ ولهُ الحَمْد، وهوَ على كلّ شَيءٍ قَدير، اللّهُـمَّ لا مانِعَ لِما أَعْطَـيْت، وَلا مُعْطِـيَ لِما مَنَـعْت، وَلا يَنْفَـعُ ذا الجَـدِّ مِنْـكَ الجَـد» "अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, उसी की बादशाहत है और उसी के लिए समस्त प्रशंसा है और वह हर काम में सक्षम है। ऐ अल्लाह! जो कुछ तू दे उसे कोई रोकने वाला नहीं है, और जो कुछ तू रोक ले, उसे कोई देने वाला नहीं है, तथा किसी प्रतिष्ठावान व्यक्ति की प्रतिष्ठा तेरे यहाँ कुछ काम नहीं दे सकती"।
«لا إلهَ إلاّ الله، وحدَهُ لا شريكَ لهُ، لهُ الملكُ ولهُ الحَمد، وهوَ على كلّ شيءٍ قدير، لا حَـوْلَ وَلا قـوَّةَ إِلاّ بِاللهِ، لا إلهَ إلاّ الله، وَلا نَعْـبُـدُ إِلاّ إيّـاه، لَهُ النِّعْـمَةُ وَلَهُ الفَضْل وَلَهُ الثَّـناءُ الحَـسَن، لا إلهَ إلاّ الله مخْلِصـينَ لَـهُ الدِّينَ وَلَوْ كَـرِهَ الكـافِرون» "अल्लाह के सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं है, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं है, उसी की बादशाहत है, और उसी की सब प्रशंसा है, और वह हर काम में सक्षम है। अल्लाह के अतिरिक्त न कोई भलाई का सामर्थ्य प्रदान कर सकता है और न बुराई से रोकने की क्षमता रखता है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा उपास्य नहीं है, हम केवल उसी की उपासना करते हैं, उसी की सब नेमतें हैं, और उसी का सब पर उपकार है, और उसी के लिए समस्त अच्छी प्रशंसाएँ हैं। अल्लाह के सिवा कोई सत्य पूज्य नहीं है, हम उसी के लिए धर्म को विशुद्ध करते हैं, चाहे ये बात काफिरों को नागवार (अप्रिय) लगती हो"।
तैंतीस बार ''سُـبْحانَ اللهِ'' (सुब्हान अल्लाह),
तैंतीस बार ''الحَمْـدُ لله'' (अल्हम्दुलिल्लाह),
तैंतीस बार ''اللهُ أكْـبَر'' (अल्लाहु अकबर) कहे,
फिर एक सौ पूरा करने के लिए कहे: "لا إله إلا الله وحده لا شريك له، له الملك وله الحمد، وهو على كل شيء قدير'' (अल्लाह के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, वह अकेला है, उसका कोई साझी नहीं, उसी के लिए राज्य और उसी के लिए सब प्रशंसा है और वह प्रत्येक चीज़ का सामर्थ्य रखता है)।
फ़ज्र तथा मग़्रिब की नमाज़ के बाद तीन बार एवं अन्य नमाज़ों के बाद एक बार सूरा इख़लास़ एवं मुव्वज़ात (क़ुल अऊज़ु बि रब्बिल फ़लक़ एवं क़ुल अऊज़ु बि रब्बिन्नास) पढ़े।
एक बार आयतुल कुर्सी पढ़े।
उत्तर- फ़ज्र से पहले दो रक्अत।
ज़ुह्र से पहले चार रक्अत
तथा जुह्र के बाद दो रक्अत।
मग़रिब के बाद दो रक्अत
और इशा के बाद दो रक्अत।
इनकी फ़ज़ीलत: जैसा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया है: जिसने दिन एवं रात की बारह रक्अत सुन्नतें पढ़ी, अल्लाह उसके लिए जन्नत में घर बनाएगा''। इस हदीस़ को मुस्लिम एवं अहमद आदि ने रिवायत किया है।
उत्तर- जुमा का दिन, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया है: सबसे अच्छा दिन जुमा का दिन है, इसी दिन आदम अलैहिस्सलाम पैदा किए गए थे, इसी दिन उनकी मृत्यु हुई थी, इसी दिन सूर फूंका जाएगा, और इसी दिन क़यामत बरपा होगी। तुम लोग इस दिन मुझ पर अधिक से अधिक दुरूद भेजा करो, क्योंकि तुम्हारे भेजे हुए दुरूद मुझ पर पेश किए जाते हैं''। वर्णनकर्ता कहते हैं: आपके साथियों ने आपसे सवाल किया, हे अल्लाह के रसूल! हमारे दुरूद आप पर कैसे पेश किए जायेंगे, जबकि आप सड़ गल गए होंगे -वे लोग ह़दीस़ में वर्णित शब्द ''अरमता'' का अर्थ ''पुराना होना एवं सड़ गल जाना'' के लेते थे- तो आपने फरमाया: सर्वशक्तिमानअल्लाह ने ज़मीन पर नबियों के शरीरों को हराम कर दिया है''। इस हदीस को अबू दावूद आदि ने रिवायत किया है।
उत्तर- प्रत्येक समझ रखने वाले, वयस्क, पुरुष एवं निवासी मुसलमान पर व्यक्तिगत रूप से फ़र्ज़ है।
अल्लाह तआला ने फ़रमाया है: (يَٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا نُودِيَ لِلصَّلَوةِ مِن يَوۡمِ ٱلۡجُمُعَةِ فَٱسۡعَوۡاْ إِلَى ذِكۡرِ ٱللَّهِ وَذَرُواْ ٱلۡبَيۡعَۚ ذَلِكُمۡ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ ) ''ऐ ईमान वालो! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए आवाज़ दी जाए, तो अल्लाह की याद की ओर दौड़ पड़ो, तथा क्रय-विक्रय छोड़ दो। यह तुम्हारे लिए बेहतर है, यदि तुम जानते हो''। [सूरा अल-मुनाफ़िक़ून: 9]
उत्तर- रोज़ा अल्लाह की इबादत की निय्यत (इरादा) से फ़ज्र प्रकट होने के समय से सुर्यास्त तक रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ों से बचे रहने का नाम है। यह दो प्रकार का होता है।
फ़र्ज़ रोज़ा: जैसे कि रमज़ान महीने का रोज़ा, यह इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ) ''ऐ ईमान वालो! तुम पर रोज़े अनिवार्य किए गए हैं, जैसा कि तुम से पहले के लोगों पर अनिवार्य किये गए थे, आशा है कि तुम संयमी एवं धर्मपरायण बन जाओ''। [सूरा अल-बक़रा: 183]
गैर वाजिब रोज़ाः जैसे कि हर हफ़्ते के सोमवार एवं बृहस्पतिवार के रोज़े, हर महीने में तीन दिन के रोज़े, इस में सर्वोत्तम है चंद्र-मास के बीच के दिनों के अय्याम-ए-बीज़ (13, 14, 15 तारीख़) के तीन दिन के रोज़े।
उत्तर- अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु का वर्णन है, वह कहते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: कोई भी बन्दा यदि अल्लाह के लिए एक दिन का रोज़ा रखता है, तो अल्लाह उस एक दिन के बदले उसके चेहरे को जहन्नम से सत्तर साल दूर कर देता है''। बुख़ारी एवं मुस्लिम।
ह़दीस़ में वर्णित अरबी भाषा का शब्द "सब्ईन् ख़रीफ़न" का अर्थ सत्तर वर्ष है।
उत्तर- हज्ज, अल्लाह की इबादत के लिए विशेष समय में, विशेष कार्यों के लिए मक्का में अल्लाह के घर हरम का सफ़र करने को कहते हैं।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَلِلَّهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ) "अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो इस घर तक पहुंचने के सामर्थी हों, इस घर का हज्ज अनिवार्य किया है, और जो कोई कुफ्र (अर्थात इस आदेश का पालन न करे) तो अल्लाह तआला (उससे बल्कि) पूरे विश्व से निस्पृह है"। [सूरा आले-इमरान: 97]
उत्तर- अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का वर्णन है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: “जिसने ह़ज्ज किया तथा ह़ज्ज के दिनों में बुरी बात एवं बुरे कार्यों से बचा एवं अवज्ञा से दूर रहा, वह उस दिन की तरह (पवित्र हो कर) लौटेगा, जिस दिन उसकी माँ ने उसे जन्म दिया था”। इसे बुख़ारी इत्यादि ने रिवायत किया है।
जिस दिन उसकी माँ ने उसे जन्म दिया'' का अर्थ है बिना किसी गुनाह के।
उत्तर- यह इस्लाम को फैलाने और इस्लाम तथा मुसलमानों की रक्षा करने, या इस्लाम तथा मुसलमानों के शत्रुओं से लड़ने के लिए प्रयास और कोशिश करने को कहते हैं।
अल्लाह तआला फ़रमाता हैः (وَجَاهِدُوا بِأَمْوَالِكُمْ وَأَنْفُسِكُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ) ''और अपने धनों तथा प्राणों से अल्लाह की राह में जिहाद करो, यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम ज्ञान रखते हो''। [सूरा अल-तौबा: 41]