अक़ीदा खंड
उत्तर- मेरा धर्म इस्लाम है, और इस्लाम का मतलब है, ख़ुद को तौह़ीद के ज़रिए अल्लाह के हवाले करना, उसके आदेशों का पालन करना और शिर्क (बहुदेववाद) एवं मुश्रिकों से अलग हो जाना।
अल्लाह तआला का फ़रमान हैः (إِنَّ الدِّينَ عِنْدَ اللَّهِ الْإِسْلَامُ) "निःसंदेह अल्लाह के निकट धर्म केवल इस्लाम है"। [सूरा आले-इमरान: 19]
उत्तर- अल्लाह आसमान के ऊपर, अर्श एवं सभी सृष्टियों से बुलंद है। अल्लाह तआला ने कहा है: (الرَّحْمَنُ عَلَى الْعَرْشِ اسْتَوَى) ''रहमान (अत्यंत कृपाशील) अर्श पर स्थिर है''। [सूरा ताहा: 5] और कहा: (وَهُوَ ٱلۡقَاهِرُ فَوۡقَ عِبَادِهِۦۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡخَبِيرُ) ''तथा वही अपने बंदों पर ग़ालिब (हावी) है और वही पूर्ण हिकमत वाला, हर चीज़ की ख़बर रखने वाला है''। [सूरा अल-अन्आम: 18]
उत्तर- इसका अर्थ है: अल्लाह ने उन्हें सारे संसार के लिए शुभ संदेश देने वाला एवं डराने वाला बनाकर भेजा है।
तथा वाजिब है:
1- उनके दिए गए आदेशों का पालन करना।
2- उनके द्वारा दी गई ख़बरों को सच मानना।
3- उनकी अवज्ञा न करना।
4- अल्लाह की उसी तरह इबादत करना जैसा कि उन्होंने बताया है, और वह है सुन्नत का पालन करना एवं बिद्अत को त्याग देना।
अल्लाह तआला ने कहा है: (مَنْ يُطِعِ الرَّسُولَ فَقَدْ أَطَاعَ اللَّهَ) ''जिसने रसूल का आज्ञापालन किया तो उसने अल्लाह का आज्ञापालन किया''।[सूरा अल-निसा: 80], पाक अल्लाह ने एक स्थान पर कहा है: (وَمَا يَنْطِقُ عَنِ الْهَوَى 3 إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَى 4) ''वह (रसूल) अपनी तरफ से कुछ नहीं कहते हैं, वह जो भी कहते हैं वह वह्यी होती है, जो अल्लाह की ओर से उनकी ओर भेजी जाती है''। [सूरा अल-नज्म: 3,4] महान एवं उच्च अल्लाह ने एक जगह कहा: (لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِمَنْ كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّهَ كَثِيرًا) "तुम्हारे लिए अल्लाह के रसूल में उत्तम आदर्श है, उसके लिए, जो आशा रखता हो अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) की, तथा याद करे अल्लाह को अत्यधिक"। [सूरा अल-अहज़ाब: 21]
उत्तर- अल्लाह ने हमें किसी को उसका साझी बनाए बिना केवल अपनी पूजा करने के लिए पैदा किया है।
मस्ती और खेल-कूद के लिए नहीं।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنْسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ) "मैंने जिन्नों और इन्सानों को मात्र इसी लिए पैदा किया है कि वे केवल मेरी इबादत करें''। [सूरा अल-ज़ारियात: 56]
उत्तर- इबादत एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है, जिसके अंदर वह सारे गुप्त तथा व्यक्त कथन और कार्य आ जाते हैं, जिन्हें अल्लाह पसंद करता है और जिनसे वह प्रसन्न होता है।
व्यक्त या ज़ाहिरी इबादत: जैसे ज़ुबान से अल्लाह की पाकी, प्रशंसा एवं बड़ाई बयान करके अल्लाह को याद करना, नमाज़ पढ़ना एवं हज्ज करना आदि।
गुप्त इबादत: जैसे अल्लाह पर भरोसा करना, उससे डरना एवं उससे उम्मीद रखना।
उत्तर- (तौहीद (एकेश्वरवाद) के तीन प्रकार हैं), 1- तौहीद-ए- रुबूबियतः अर्थात इस बात पर ईमान कि अल्लाह ही पैदा करने वाला, जीविका देने वाला, मालिक एवं प्रबंध करने वाला है, वह अकेला है एवं उसका कोई साझी नहीं है।
2- तौहीद-ए-उलूहियत: इसका अर्थ है केवल एक अल्लाह की इबादत करना एवं उसके अलावा किसी और की इबादत न करना।
3- तौहीद-ए-अस्मा व स़िफात: क़ुरआन व हदीस़ में उल्लेखित अल्लाह के नामों एवं विशेषताओं पर ईमान लाना, बिना किसी से उसको उपमा देते हुए एवं सादृश्य ठहराए हुए या किसी (नाम अथवा विशेषता) को रद्द किए हुए।
तीनों तौहीद के प्रकारों की दलील अल्लाह तआला का यह फरमान है: (رَّبُّ ٱلسَّمَـوَ تِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا فَٱعۡبُدۡهُ وَٱصۡطَبِرۡ لِعِبَـدَتِهِۦۚ هَلۡ تَعۡلَمُ لَهُۥ سَمِيًّا) ''आकाशों तथा धरती का रब तथा जो उन दोनों के बीच है। अतः उसी की इबादत करें तथा उसकी इबादत पर डटे रहें। क्या आप उसके समक्ष किसी को जानते हैं''? [सूरा मर्यम: 65]
उत्तर: अल्लाह तआला के साथ शिर्क करना:
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (إِنَّ اللَّهَ لَا يَغْفِرُ أَنْ يُشْرَكَ بِهِ وَيَغْفِرُ مَا دُونَ ذَلِكَ لِمَنْ يَشَاءُ وَمَنْ يُشْرِكْ بِاللَّهِ فَقَدِ افْتَرَى إِثْمًا عَظِيمًا) "निःसंदेह अल्लाह यह क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी बनाया जाए और उसके सिवा जिसके लिए चाहे, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह का साझी बनाता है, तो उसने महा पाप गढ़ लिया"। [सूरा अल-निसा: 48]
उत्तर- शिर्क: किसी भी प्रकार की बंदगी का प्रदर्शन अल्लाह के अतिरिक्त किसी और के लिए करना है।
शिर्क के प्रकार:
बड़ा शिर्क: जैसे अल्लाह के अतिरिक्त किसी और को पुकारना, किसी गैर को सज्दा करना, उसके लिए जानवर ज़बह करना।
छोटा शिर्क: जैसे अल्लाह के अलावा किसी और की क़सम खाना, ताबीज़ पहनना. और ताबीज़ पहनने का अर्थ है किसी लाभ को प्राप्त करने या किसी नुकसान से दूर रहने हेतु किसी भी चीज़ को लटकाना। इसी प्रकार कम मात्रा में रियाकारी (दिखावा, पाखण्ड), जैसा कि किसी को दिखाने के लिए अच्छी तरह नमाज़ पढ़ना।
उत्तर- अल्लाह के अलावा कोई परोक्ष को नहीं जानता है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (قُل لَّا يَعۡلَمُ مَن فِي ٱلسَّمَـوَ تِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلۡغَيۡبَ إِلَّا ٱللَّهُۚ وَمَا يَشۡعُرُونَ أَيَّانَ يُبۡعَثُونَ) ''आप कह दें कि आकाश और धरती में कोई अल्लाह के सिवा ग़ैब (परोक्ष) की बात नहीं जानता, और वे नहीं जानते कि कब फिर जीवित किए जाएँगे''। [सूरा अल-नम्ल: 65]
उत्तर- 1-अल्लाह तआला पर ईमान
2- उसके फ़रिश्तों पर ईमान
3- उसकी पुस्तकों पर ईमान
4- उसके रसूलों पर ईमान
5- आख़िरत के दिन पर ईमान
6- अच्छी एवं बुरी तक़दीर (भाग्य) पर ईमान
तथा इसकी दलील, मुसलमानों के बीच हदीस़-ए-जिब्रील के नाम से प्रसिद्ध हदीस़ हैः जिब्रील अलैहिस्सलाम ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहा: मुझे ईमान के बारे में बताइए, तो आपने कहा: ईमान यह है कि तुम अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों, अंतिम दिन तथा भाग्य के अच्छे एवं बुरे होने पर ईमान लाओ''l
उत्तर: अल्लाह तआला पर ईमान:
इस बात पर ईमान कि अल्लाह ही ने आपको पैदा किया है, वही आपको खाना देता है, केवल वही सभी सृष्टियों का मालिक एवं प्रबंध करने वाला है।
वही माबूद (पूज्य) है, उसके सिवा कोई सत्य माबूद नहीं है।
वह बड़ा, महान एवं सम्पूर्ण है, उसी के लिए सारी प्रशंसा है, उसके अच्छे अच्छे नाम एवं उच्च गुण हैं, उसके बराबर कोई नहीं और न उस पवित्र के जैसा कोई है।
फ़रिश्तों पर ईमान:
वह एक सृष्टि है जिसको अल्लाह ने नूर से, अपनी इबादत एवं अपने आदेश का पूर्ण अनुसरण करने के लिए पैदा किया है।
उन्हीं में से जिब्रील अलैहिस्सलाम हैं, जो नबियों के पास वह्यी (संदेश) लेकर आते थे।
पवित्र ग्रंथों पर ईमान।
ये वो ग्रंथ हैं जिनको अल्लाह ने अपने रसूलों पर उतारा है,
जैसे कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर क़ुरआन,
ईसा अलैहिस्सलाम पर इंजील
मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात,
दावूद अलैहिस्सलाम पर ज़बूर
और इब्राहीम एवं मूसा अलैहिमास्सलाम पर स़हीफ़े।
संदेष्टाओं (रसूलों) पर ईमान:
ये वो लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने अपने बन्दों के पास भेजा, ताकि उन्हें उनका धर्म सिखाएं, उन्हें भलाई एवं जन्नत का शुभसंदेश दें और उन्हें बुराई तथा नरक से सचेत करें।
उनमें से सबसे श्रेष्ठ उलुल अज़्म (दृढ़ता वाले रुसुल) हैं, जोकि ये हैं:
नूह अलैहिस्सलाम,
इब्राहीम अलैहिस्सलाम,
मूसा अलैहिस्सलाम,
ईसा अलैहिस्सलाम,
और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
अंतिम दिन (आख़िरत के दिन) पर ईमान:
इसका अर्थ है, ईमान रखनाः मृत्यु के बाद क़ब्र की स्थिति पर, क़यामत के दिन पर, तथा उठाए जाने (पुनरुत्थान) और हिसाब के दिन पर, जब स्वर्ग वाले अपने ठिकाने में स्थिर हो जाएंगे एवं नरक वाले अपने ठिकाने में।
तक़दीर की अच्छाई और बुराई पर ईमान:
तक़दीर या भाग्य: यह विश्वास रखना है कि ब्रह्मांड में जो कुछ होता है, अल्लाह सब को जानता है, उसने उसे संरक्षित किताब में लिख लिया है, फिर उसने उसके अस्तित्व एवं पैदा करने को चाहा है।
अल्लाह तआला ने कहा है: (إِنَّا كُلَّ شَيْءٍ خَلَقۡنَـٰهُ بِقَدَر) ''हमने हर चीज़ को ख़ास अनुपात के साथ पैदा किया है''। [सूरा अल-क़मर: 49]
इसके चार दर्जे (श्रेणियां) हैं:
पहला दर्जा: अल्लाह का जान लेना, इसी में से है कि उसका ज्ञान हर चीज़ से पहले है, चीज़ों के घटित होने से पहले भी और घटित होने के बाद भी।
इसका प्रमाण: उच्च एवं महान अल्लाह का यह फ़रमान है: (إِنَّ اللَّهَ عِنْدَهُ عِلْمُ السَّاعَةِ وَيُنَزِّلُ الْغَيْثَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْأَرْحَامِ وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ مَاذَا تَكْسِبُ غَدًا وَمَا تَدْرِي نَفْسٌ بِأَيِّ أَرْضٍ تَمُوتُ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ) ''निःसंदेह, अल्लाह ही के पास है प्रलय का ज्ञान, वही उतारता है वर्षा और जानता है जो कुछ गर्भाशयों में है, और नहीं जानता कोई प्राणी कि वह कल क्या कमायेगा, और नहीं जानता कोई प्राणी कि किस धरती में मरेगा। वास्तव में, अल्लाह ही सब कुछ जानने वाला, सबसे सूचित है''। [सूरा लुक़मान: 34]
दूसरा दर्जा: अल्लाह ने उसे संरक्षित पुस्तक (लौह़ -ए- मह़फूज़) में लिख लिया है, हर चीज़ जो घटित हुई या होगी, सब कुछ उसके पास पुस्तक में लिखी हुई है।
इसका प्रमाण: उच्च एवं महान अल्लाह का यह फ़रमान है: (وَعِنْدَهُ مَفَاتِحُ الْغَيْبِ لَا يَعْلَمُهَا إِلَّا هُوَ وَيَعْلَمُ مَا فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَا تَسْقُطُ مِنْ وَرَقَةٍ إِلَّا يَعْلَمُهَا وَلَا حَبَّةٍ فِي ظُلُمَاتِ الْأَرْضِ وَلَا رَطْبٍ وَلَا يَابِسٍ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُبِينٍ) "और उसी (अल्लाह) के पास गैब की कुंजियाँ हैं, जिनको सिर्फ वही जानता है, और जो थल और जल में है, उन सभी को वह जानता है, और जो भी पत्ता गिरता है उसे भी वह जानता है, और जमीन के अंधेरों में जो भी दाना है और जो भी तर (आर्द्र) तथा ख़ुश्क (सूखा) है, सब कुछ एक खुली किताब में है"। [सूरा अल-अन्आम: 59]
तीसरा दर्जा: हर चीज़ अल्लाह की चाहत से ही होती है, कोई भी चीज़ नहीं होती है, या कुछ पैदा नहीं होता है, मगर जब वह चाहता है।
इसका प्रमाण: उच्च एवं महान अल्लाह का यह फ़रमान है: (لِمَنْ شَاءَ مِنْكُمْ أَنْ يَسْتَقِيمَ 28 وَمَا تَشَاءُونَ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ 29) “(विशेष रूप से) उसके लिए जो तुम में से सीधे मार्ग पर चलना चाहे। तथा तुम बिना समस्त जगत के रब के चाहे, कुछ नहीं चाह सकते”। [सूरा अत-तकवीर: 28, 29]
चौथा दर्जा: इस बात पर ईमान कि समस्त सृष्टि अल्लाह द्वारा बनाई गई है, उसी ने उनके व्यक्तित्व, उनके गुण, उनकी चाल और उनमें सब कुछ पैदा किया है।
इसका प्रमाण: उच्च एवं महान अल्लाह का यह फ़रमान है: (وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ وَمَا تَعْمَلُونَ) “हालाँकि अल्लाह ने तुम को और जो तुम करते हो, सबको पैदा किया है”। [सूरा अस-साफ़्फ़ात: 96]
उत्तर- हर वह नई चीज़ जिसे लोगों ने धर्म में गढ़ लिया हो, और वो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम या आपके साथियों के ज़माना में नहीं थी।
हम उसे कदापि स्वीकार नहीं करेंगे, बल्कि उसका खंडन करेंगे।
क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया है: हर बिदअत गुमराही है''। इसे अबू दावूद ने रिवायत किया है।
इसका उदाहरण: इबादत में ज़्यादा करना, जैसे कि वुज़ू में वृद्धि करते हुए अंगों को चार बार धोना, इसी प्रकार से नबी का जन्म दिन मनाना,क्योंकि ये नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम या आपके साथियों से वर्णित नहीं हैं।
उत्तर- वलाअ अर्थात दोस्ती, यह मोमिनों से मुहब्बत एवं उनकी मदद करने का नाम है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ) "और मोमिन मर्द और मोमिन औरतें एक-दूसरे के दोस्त हैं"। [सूरा अल-तौबा: 71]
अलबराअ या अलग हो जाना, यह काफ़िरों से नफ़रत एवं उनसे दुश्मनी का नाम है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (قَدْ كَانَتْ لَكُمْ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ فِي إِبْرَاهِيمَ وَالَّذِينَ مَعَهُ إِذْ قَالُوا لِقَوْمِهِمْ إِنَّا بُرَآءُ مِنْكُمْ وَمِمَّا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ كَفَرْنَا بِكُمْ وَبَدَا بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ الْعَدَاوَةُ وَالْبَغْضَاءُ أَبَدًا حَتَّى تُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَحْدَهُ) ''इब्राहीम और उनके साथियों में तुम्हारे लिए अच्छा नमूना है, जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा था कि हम तुम्हें और हर उस वस्तु को त्याग दे रहे हैं जिनकी तुम लोग अल्लाह के अलावा पूजा करते हो। हमने तुम्हारा खुला इंकार किया और आज से हमारे और तुम्हारे बीच सदा के लिए दुश्मनी और घृणा शुरू हो रही है, यहाँ तक कि तुम लोग केवल एक अल्लाह पर ईमान ले आओ''। [सूरा अल-मुमतहिनह: 4]
उत्तर- अल्लाह इस्लाम के सिवा किसी और धर्म को स्वीकार नहीं करेगा।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (وَمَن یَبتَغِ غَیرَ ٱلإِسلَـٰمِ دِینا فَلَن یُقبَلَ مِنهُ وَهُوَ فِی ٱلـَٔاخِرَةِ مِنَ ٱلخَـٰسِرِینَ) ''जो इस्लाम के अतिरिक्त किसी और धर्म को चाहेगा, अल्लाह उससे उसको स्वीकार नहीं करेगा, और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा''। [सूरा आले-इमरान: 85]
उत्तर- ज़ुबान का उदाहरण: पाक अल्लाह या उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को गाली देना।
कार्य का उदाहरण: क़ुरआन का अपमान करना या अल्लाह के सिवा अन्य को सज्दा करना।
आस्था में कुफ़्र का उदाहरण: यह विश्वास रखना कि अल्लाह के अतिरिक्त भी किसी की इबादत की जा सकती है या अल्लाह के साथ कोई और भी सृष्टिकर्ता है।
उत्तर-
1- बड़ा निफ़ाक़: और वह है कुफ़्र को छुपाना एवं ईमान का दिखावा करना।
यह इस्लाम से बाहर निकाल देता है, और यह महा कुफ़्र है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (إِنَّ ٱلمُنَـٰفِقِینَ فِی ٱلدَّركِ ٱلأَسفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُم نَصِیرًا) ''मुनाफ़िक़ीन (पाखंडी लोग) जहन्नम के सबसे निचले दर्जे में होंगे, और आप उनके लिए कोई मदद करने वाला नहीं पाएंगे''। [सूरा अल-निसा: 145]
2- छोटा निफ़ाक़:
उदाहरण: झूठ बोलना, वचन पूरा न करना एवं अमानत में ख़्यानत (बेईमानी) करना।
यह इस्लाम से बाहर नहीं करता है, यह ऐसे गुनाहों में से है जिनका करने वाला यातना का हक़दार है।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: मुनाफ़िक़ की तीन निशानियाँ हैं: जब बोलता है तो झूठ बोलता है, वादा करता है तो उसे पूरा नहीं करता और जब उसके पास अमानत रखी जाती है तो उसमें दगा करता है''। इसे बुख़ारी एवं मुस्लिम ने रिवायत किया है।
उत्तर- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَا أَحَد مِّن رِّجَالِكُم وَلَـٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ النَّبِيِّينَۗ) ''मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हारे पुरुषों में से किसी के पिता नहीं, बल्कि अल्लाह के रसूल और अंतिम नबी हैं''। [सूरा अल-अहज़ाब: 40] अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा है: मैं नबियों की श्रृंखला को समाप्त करने वाला हूँ, मेरे बाद कोई नबी नहीं होगा''। इस हदीस़ को अबू दावूद और तिरमिज़ी आदि ने रिवायत किया है।
उत्तर- स़हाबी वह है जिसने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से ईमान की हालत में मुलाक़ात की हो एवं इस्लाम पर ही उनकी मृत्यु हुई हो।
हम उनसे मुहब्बत करते हैं, उनके रास्ते पर चलते हैं, वे नबियों के बाद लोगों में सबसे अच्छे एवं भले इंसान हैं।
उनमें सबसे उत्तम चारों ख़लीफ़ा हैं:
अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु,
उमर रज़ियल्लाहु अन्हु,
उस़्मान रज़ियल्लाहु अन्हु,
और अली रज़ियल्लाहु अन्हु।
उत्तर- अल्लाह और उसके दंड से भय खाने को डर या ख़ौफ़ कहते हैं।
रजाअ या उम्मीद, अल्लाह के स़वाब (प्रतिफल), एवं उसकी क्षमा या रहमत की उम्मीद को रजाअ कहते हैं।
इसका प्रमाण: उच्च एवं महान अल्लाह का यह फ़रमान है: वास्तव में, जिन्हें ये लोग पुकारते हैं, वे स्वयं अपने पालनहार के निकट होने का साधन खोजते रहते हैं, कि उन में से कौन अधिक निकट हो जाए? और उसकी दया की आशा रखते हैं और उसकी यातना से डरते हैं। वास्तव में, आपके रब की यातना डरने योग्य है''। [सूरा अल-इस्रा: 57] और दूसरी जगह अल्लाह तआला ने फ़रमायाः (نَبِّئْ عِبَادِي أَنِّي أَنَا الْغَفُورُ الرَّحِيمُ 49 وَأَنَّ عَذَابِي هُوَ الْعَذَابُ الْأَلِيمُ 50) ''(हे नबी) आप मेरे बन्दों को ख़बर दे दें कि वास्तव में मैं बड़ा क्षमाशील एवं दयावान हूँ। एवं मेरी यातना बहुत दर्दनाक यातना है''। [सूरा अल-हिज्र: 49,50]
उत्तर- अल्लाह: इसका अर्थ है एक सत्य माबूद, पूज्य, जो केवल एक है, जिसका कोई साझी नहीं।
रब: अर्थात, एकमात्र पैदा करने वाला, मालिक, जीविका देने वाला, प्रबंध करने वाला।
समीअ: जिसके सुनने की शक्ति हर चीज़ को शामिल है, वह सभी आवाज़ों को उनके अलग अलग होने एवं विविधता के बावजूद सुनता है।
बस़ीर: जो हर छोटी बड़ी चीज़ों को देखता एवं उनका ज्ञान रखता है।
अलीम: जिसका ज्ञान व्यापक है, जो हर चीज़ के भूत, वर्तमान और भविष्य को शामिल है।
रहमान: जिसकी रहमत प्रत्येक सृष्टि एवं जीवित चीज़ को शामिल है, सभी बन्दे एवं सृष्टियाँ उसकी दया व कृपा की छाया में जी रही हैं।
रज़्ज़ाक़: जिसपर सभी सृष्टियों जैसे कि इंसान, जिन्न एवं धरती पर चलने वाली सभी चीज़ो को खिलाने की ज़िम्मेदारी है।
हय्य: जो अमर है, कभी नहीं मरेगा, जबकि सभी सृष्टियाँ मर जाएंगी।
अज़ीम: जिसके नामों, कामों एवं विशेषताओं में हर प्रकार की महानता, पूर्णता एवं बड़ाई है।
उत्तर- हम उनसे मुहब्बत करते हैं, धार्मिक समस्याओं एवं आपदाओं के समय उनका रुख करते हैं, उनका गुणगान करते हैं, जो उनकी बुराई बयान करता है, वह सही रास्ते पर नहीं है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (يَرۡفَعِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا مِنكُمۡ وَٱلَّذِينَ أُوتُوا ٱلۡعِلۡمَ دَرَجَـٰتۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِير ) ''अल्लाह तुम लोगों में से ईमान वालों एवं ज्ञान वालों के दर्जे को ऊँचा करता है, और जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उनको अच्छी तरह जानता है''। [सूरा अल-मुजादला: 11]
उत्तर- वो ईमान वाले एवं अल्लाह से डरने वाले हैं।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (أَلَا إِنَّ أَوْلِيَاءَ اللَّهِ لَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ 62 الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ 63) ''सुनो! बेशक अल्लाह के मित्रों को कोई भय नहीं है और न वे उदासीन होंगे। जो लोग ईमान लाए एवं अल्लाह से डरते हैं 63''। [सूरा यूनुस: 62,63]
उत्तर- अल्लाह के अनुपालन से ईमान बढ़ता है एवं अल्लाह की अवज्ञा से घटता है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ وَإِذَا تُلِيَتْ عَلَيْهِمْ آيَاتُهُ زَادَتْهُمْ إِيمَانًا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ) "वास्तव में, ईमान वाले वही हैं कि जब अल्लाह का वर्णन किया जाए, तो उनके दिल काँप उठते हैं और जब उनके समक्ष उसकी आयतें पढ़ी जाएँ, तो उनका ईमान अधिक हो जाता है और वे अपने पालनहार पर ही भरोसा रखते हैं"। [सूरा अल-अनफाल: 2]
उत्तर- साधनों को अपनाते हुए, लाभ कमाने एवं नुकसान को दूर रखने के लिए अल्लाह पर भरोसा करना, इसी का नाम तवक्कुल (भरोसा) है।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (وَمَنْ يَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ فَهُوَ حَسْبُهُ) "तथा जो अल्लाह पर निर्भर रहेगा, तो वह उसके लिए काफ़ी होगा"। [सूरा अल-तलाक़: 3]
आयत में उल्लेखित (حَسْبُهُ) का अर्थ है कि वह काफ़ी है।
उत्तर- मअरूफ़ अर्थात अच्छाई का मतलब है (लोगों को) महान अल्लाह के हर अज्ञापालन का आदेश देना एवं मुन्कर अर्थात बुराई का मतलब है (लोगों को) महान अल्लाह की हर अवज्ञा से रोकना।
सर्वोच्च अल्लाह का कथन हैः (كُنتُمۡ خَيۡرَ أُمَّةٍ أُخۡرِجَتۡ لِلنَّاسِ تَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَتَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِۗ) ''तुम उत्तम क़ौम हो, जो लोगों के लिए आए हो, तुम भलाई का आदेश देते हो एवं बुराई से रोकते हो, तथा अल्लाह पर ईमान रखते हो''। [सूरा आले-इमरान: 110]
उत्तर- जो लोग अपनी कथनी, करनी एवं अक़ीदा (आस्था) में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तथा उनके साथियों के मार्ग पर हों।
उन लोगों को अह्ले सुन्नत इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वे लोग नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सन्नत की पैरवी करते हैं एवं बिद्अत को त्याग देते हैं।
एवं जमाअत इसलिए कहा जाता है कि वे सत्य पर एकत्र हुए हैं एवं उसमें अलग-अलग नहीं होते।