तफ़सीर (क़ुरआन की व्याख्या) का खंड
उत्तर- सूरा फ़ातिहा और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है। "समस्त प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसारों का रब है। जो अत्यंत कृपाशील तथा दयावान है। जो प्रतिकार (बदले) के दिन का मालिक है। (हे अल्लाह) हम तेरी ही उपासना करते हैं तथा तुझ ही से सहायता माँगते हैं। हमें सुपथ (सीधा मार्ग) दिखा। उनका मार्ग, जिनको तूने पुरष्कृत किया। उनका नहीं, जिन पर तेरा प्रकोप हुआ और न ही उनका, जो कुपथ (गुमराह) हो गए।" [सूरा अल-फ़ातिहा: 1-7]
तफ़सीर (व्याख्या):
सूरा फ़ातिहा को फ़ातिहा (खोलने वाला) इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा अल्लाह की किताब की शुरूआत होती है।
1- ''बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम'' बिस्मिल्लाह का अर्थ है कि मैं आरंभ करता हूँ क़ुरआन पढ़ना, अल्लाह के नाम की बरकत से एवं उससे मदद माँगते हुए।
अल्लाह'' अर्थात सत्य पूज्य, उसके अतिरिक्त इस नाम किसी अन्य को नहीं दिया जा सकता है।
अर-रहमान'' (कृपाशील): व्यापक कृपा का मालिक, जिसकी कृपा हर चीज़ को शामिल है।
अर-रहीम'' अर्थात मोमिनों पर रहम करने वाला।
2- ''अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बि अल-आलमीन'' अर्थात: सभी प्रकार की प्रशंसा एवं कमाल केवल एक अल्लाह के लिए है, जो सारे जहानों का रब है।
3- ''अर-रहमानिर रहीम'' अर्थात: जो व्यापक रहमत वाला है, जिसकी रहमत हर चीज़ को शामिल है, और उसकी दया व कृपा मोमिनों तक पहुँचती है।
4- ''मालिकि यौमिद्दीन'' जो क़यामत के दिन का मालिक है।
5- ''इय्याका नअ्बुदु व इय्याका नस्तईन'' अर्थात: हे अल्लाह! हम केवल तेरी ही इबादत करते हैं और केवल तुझ से ही मदद माँगते हैं।
6- ''इहदिनस़् स़िरात़ल मुसतक़ीम'': हमें सीधा मार्ग दिखा, अर्थात: इस्लाम एवं सुन्नत का मार्ग।
7- ''स़िरात़ल लज़ीना अन्अम्ता अलैहिम, ग़ैरिल मग़ज़ूबि अलैहिम, वलज़् ज़ाल्लीन'' अर्थात: तू हमें अपने नेक बन्दों यानी नबियों एवं उनके अनुयायियों का मार्ग दिखा, जिन पर तूने पुरस्कार किया है, न कि यहूद व ईसाइयों का मार्ग, जो पथभ्रष्ट हो गए।
सुन्नत यह है कि इस सूरा को पढ़ने के बाद ''आमीन'' कहा जाए, अर्थात: हे अल्लाह! इसे क़बूल कर ले।
उत्तर- सूरा ज़लज़ला और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
जब धरती को पूरी तरह झंझोड़ दिया जायेगा। तथा भूमि अपने बोझ बाहर निकाल देगी। और इन्सान कहेगा कि इसे क्या हो गया है? उस दिन वह अपनी सभी सूचनायें वर्णन कर देगी। क्योंकि तेरे पालनहार ने उसे यही आदेश दिया है। उस दिन लोग तितर-बितर होकर आयेंगे, ताकि वे अपने कर्मों को देख लें। "तो जिस ने कण (ज़र्रे) के बराबर भी पुण्य (नेकी) किया होगा, वह उसे देख लेगा। और जिसने एक कण के बराबर भी बुरा कर्म किया होगा, वह उसे देख लेगा''। [सूरा अल-ज़लज़ला: 1-8]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''इज़ा ज़ुलज़िलतिल अरज़ु ज़िलज़ालहा'', जब धरती को पूरी तरह झंझोड़ दिया जायेगा, और ऐसा क़यामत के दिन होगा।
2- ''व उख़रिजतिल अरज़ु अस़क़ालहा'', अर्थात: धरती के सीने में जो कुछ है मुर्दों वग़ैरह में से, वह सब बाहर निकाल कर फेंक देगी।
3- ''व क़ालल इंसानु मालहा'', अर्थात: इंसान हैरान होकर कहेगा किः इस धरती को क्या हो गया है, हिल रही है, परेशान है, सब कुछ को निकाल कर फेंक रही है?
4- ''यौमइज़िन तुहद्दिस़ु अख़बारहा'', अर्थात: उस महान दिन, धरती पर जो अच्छाई और बुराई की गई है, धरती उसे बयान कर देगी।
5- ''बिअन्ना रब्बका औह़ा लहा'' और वह ऐसा इसलिए करेगी क्योंकि अल्लाह उसे आदेश देगा तथा ऐसा करने को कहेगा।
6- ''यौमइज़ीं,यस़दुरुन् नासु अश्तातल लियुरौ आमालहुम'', अर्थात: उस महान दिन में, जब धरती ज़ोर-ज़ोर से हिलाई जाएगी, लोग हिसाब के स्थान से समूहों में निकलेंगे, ताकि वे दुनिया में अपने किए हुए कामों को देखें।
7- ''फ़मैंय् यअ्मल मिस़क़ाला ज़र्रतिन खैरैंय् यरहु'', तो जो कोई एक चींटी या कण बराबर भी अच्छा तथा नेकी का काम किया होगा, वह उसे अपने सामने देखेगा।
8- ''वमैंय् यअ्मल मिस़क़ाला ज़र्रतिन शर्रैंय यरहु'', और जो कोई कण के बराबर भी बुरा काम किया होगा, वह उसे अपने समक्ष देखेगा।
उत्तर- सूरा अल-आदियात और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
उन घोड़ों की शपथ जो दौड़ कर हाँफ जाते हैं। फिर पत्थरों पर टाप मार कर चिंगारियाँ निकालने वालों की शपथ। फिर प्रातः काल में धावा बोलने वालों की शपथ। जो (अपनी दौड़ के द्वारा) धूल उड़ाते हैं। फिर सेना के बीच घुस जाते हैं। वास्तव में, इन्सान अपने रब का बड़ा कृतघ्न (नाशुकरा) है। निश्चित रूप से, वह इसपर स्वयं साक्षी (गवाह) है। और बेशक वह धन से बड़ा प्रेम रखता है। क्या वह उस समय को नहीं जानता, जब क़ब्रों में जो कुछ है, निकाल लिया जायेगा? और सीनों के भेद प्रकाश में लाये जायेंगे? निश्चय उनका रब उस दिन उनसे पूर्ण रूप से सूचित होगा। [सूरा अल-आदियात: 1-11]
तफ़सीर (व्याख्या):
'वल आदियाति ज़ब्हन'', अल्लाह ने इस आयत में उन घोड़ों की क़सम खाई है, जो दौड़ते हैं, यहाँ तक कि उनके तेज़ दौड़ने के कारण उनकी साँसों की आवाज़ सुनाई देती है।
2- ''फलमूरियाति क़द्हन'', और उन घोड़ों की क़सम खाई है, जिनके खुर जब चट्टानों पर तेज़ी से पड़ते हैं, तो उनसे चिंगारियाँ निकलती हैं।
3- ''फलमुग़ीराति स़ुब्हन'', फिर उन घोड़ों की क़सम खाई है जो स़ुबह के समय दुश्मनों पर हमला बोल देते हैं।
4- ''फ़अस़र्ना बिहि नक़अन'', और उनके दौड़ने के कारण धूल उड़ते हैं।
5- ''फ़वसत़्ना बिहि जम्अन'', अर्थात: वह दुश्मनों की पंक्तियों में घुस जाते हैं।
6- ''इन्नल इंसाना लिरब्बिही लकनूद'', अर्थात: इंसान अपने पालनहार का बड़ा कृतघ्न है, वह उस भलाई का इंकार करता है जो उसका रब उससे चाहता है।
7- ''व इन्नहु अला ज़ालिका ल शहीद'', वह स्वयं इस पर गवाह है कि वह भलाई से रोकने वाला है, उसके स्पष्ट होने के कारण वह उसका इंकार कर ही नहीं सकता।
8- ''व इन्नहु लि हुब्बिल ख़ैरि ल शदीद'', वह धन व माल को अत्यधिक चाहने के कारण उसमें कंजूसी से काम लेता है।
9- ''अफ़ला यअ्लमु इज़ा बुअ्स़िरा मा फिल क़ुबूरि'', अर्थात: क्या सांसारिक जीवन के धोखे में पड़ा हुआ यह इनसान नहीं जानता, जब अल्लाह क़ब्रों में मौजूद मुर्दों को पुनर्जीवित करेगा और उन्हें हिसाब और बदले के लिए ज़मीन से बाहर निकालेगा कि मामला वैसा नहीं था, जैसा उसने समझ रखा था?!
10- ''व हुस़्स़िला मा फिस़्स़ुदूर'', अर्थात दिलों में नियतों, विश्वासों तथा आस्थाओं आदि में से जो कुछ है सब जग जाहिर हो जाएंगे।
11- ''इन्ना रब्बहुम बिहिम यौमइज़िन ल ख़बीर'', निश्चय उनका रब उस दिन उनकी पूरी खबर रखने वाला है, उससे उसके बंदों की कोई बात छिपी नहीं है और वह उन्हें उसका बदला देगा।
उत्तर- सूरा अल-क़ारिया और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
वह खड़खड़ा देने वाली। क्या है वह खड़खड़ा देने वाली? और तुम क्या जानो कि वह खड़खड़ा देने वाली (क़यामत) क्या है? जिस दिन लोग, बिखरे पतिंगों के समान (व्याकूल) होंगे। और पर्वत, धुनी हुई ऊन के समान उड़ेंगे। तो जिसका (पुण्य का) पलड़ा भारी होगा। तो वह मनचाहे सुख में होगा। तथा जिसके (पुण्य के) पलड़े हल्के होंगे। उसका ठिकाना हाविया होगा। और तुम क्या जानो वह (हाविया) क्या है? वह दहकती हुई आग है। [सूरा अल-क़ारिया: 1-11]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''अल्क़ारिअ्तु'', वह क़यामत की घड़ी जो अपनी भयावहता के कारण लोगों के दिलों को झंझोड़ देगी?!
2- ''मल्क़ारिअ्तु'' क्या है वह क़यामत की घड़ी जो अपनी भयावहता के कारण लोगों के दिलों को झंझोड़ देगी?!
3- ''व मा अद्राका मल्क़ारिअ्तु'', और (ऐ रसूल) आपको क्या पता कि वह कौन-सी घड़ी है, जो अपनी भयावहता के कारण लोगों के दिलों को झंझोड़ देगी?! निश्चय ही वह क़यामत का दिन है।
4- ''यौम यकूनुन नासु कल्फ़राशिल मबस़ूस़ि'', अर्थात उस दिन लोगों के दिल इतने भयभीत होंगे कि वे उड़ते हुए पतिंगों की तरह होंगे, कभी यहाँ कभी वहाँ।
5- ''व तकूनुल जिबालु कल इहनिल मनफ़ूश'', पहाड़ चलने एवं हरकत करने में इतने हल्के हो जाएंगे कि मानो धुनी हुई रूई के समान रेज़ा रेज़ा (सूक्ष्म खंड) हों।
6- ''फ़अम्मा मन स़क़ुलत मवाज़ीनुहू'', अर्थात जिनके नेक कार्य बुराई के कार्य की तुलना में अधिक होंगे।
7- ''फ़हुवा फ़ी ईशतिर राज़ियातिन'', अर्थात वह अपने मन मुताबिक सुख में होगा, जन्नत में वह जो चाहेगा, मिलेगा।
8- ''व अम्मा मन ख़फ़्फ़त मवाज़ीनुहू'', और जिसके बुरे कार्य उसके भले कार्य से अधिक होंगे।
9- ''फ़उम्मुहू हावियतुन'', तो क़यामत के दिन उसका आश्रय व ठिकाना जहन्नम होगा।
10- ''व मा अदराका माहियह'', और हे रसूल! तुमको क्या ख़बर कि वह हाविया क्या है?
11- ''नारुन हामियतुन'', अर्थात वह ऐसी आग है जो अत्यधिक धधकी हुई है।
उत्तर- सूरा अल-तकास़ुर और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
तुम्हें अधिक (धन) की चाहत ने मग्न कर दिया। यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तान जा पहुँचे। निश्चय तुम्हें ज्ञान हो जायेगा। फिर निश्चय ही तुम्हें ज्ञान हो जायेगा। वास्तव में, यदि तुम्हें विश्वास होता (तो अधिक धन की चाहत न करते)। तुम जहन्नम को अवश्य देखोगे। फिर उसे विश्वास की आँख से देखोगे। फिर उस दिन तुमसे सुख सम्पदा के विषय में अवश्य पूछ गछ होगी। [सूरा अल-तकास़ुर: 1-8]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''अलहाकुम अत्तकास़ुरु'',(ऐ लोगो) तुम्हें धन और संतान पर आपस में गर्व ने अल्लाह की आज्ञाकारिता से बेख़बर कर दिया।
2- ''ह़त्ता ज़ुरतुमुल मक़ाबिर'', यहाँ तक कि तुम क़ब्रिस्तान जा पहुँचे, अर्थात, मर गए और अपनी अपनी क़बरों में जा पहुँचे।
3- ''कल्ला सौफ़ा तअ्लमून'' शीघ्र ही तुम्हें पता चल जायेगा कि धन और संतान के गर्व में पड़कर अल्लाह की आज्ञाकारिता से ग़ाफ़िल नहीं होना चाहिए था। तुम्हें जल्द ही उस ग़फ़लत का परिणाम पता चल जाएगा।
4- ''स़ुम्मा कल्ला सौफ़ा तअ्लमून'', फिर उस दिन तुम इस लापरवाही के अंजाम को जान जाओगे।
5- ''कल्ला लौ तअ्लमूना इल्मल यक़ीनि'', अर्थात, वास्तव में, यदि तुम निश्चित तौर पर जान लेते कि तुम उठाए जाओगे, और अल्लाह के पास ले जाए जाओगे, और यह कि वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों का बदला देगा; तो तुम धन और संतान पर आपस में गर्व करने में व्यस्त न होते।
6- ''लतरवुन्नल जह़ीम'', तुम अवश्य ही क़यामत के दिन आग देखोगे।
7- ''स़ुम्मा लतरवुन्नहा ऐनल यक़ीनि'', इसका अर्थ है कि तुम अपनी आँखों से देखोगे, तब तुम्हें विश्वास हो जाएगा, और कोई संदेह बाक़ी नहीं रहेगा।
8- ''स़ुम्मा लतुस्अलुन्ना यौमइज़िन अनिन नईम'', फिर उस दिन अल्लाह तुमसे उन नेमतों के बारे में अवश्य पूछेगा, जो उसने तुम्हें स्वास्थ्य और धन आदि के रूप में प्रदान की हैं।
उत्तर- सूरा अल-अस़्र और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
सौगन्ध है काल (ज़माना) की। निस्संदेह, (सारे) लोग घाटे में हैं। सिवाय उन लोगों के, जो ईमान लाए, नेक काम किए तथा एक-दूसरे को सत्य को अपनाने की नसीहत करते रहे और धैर्य का उपदेश देते रहे। [सूरा अल-अस्र्: 1-3]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''वल अस्रि'' पाक व पवित्र अल्लाह ने युग की क़सम खाई है।
2- ''इन्नल इंसाना लफ़ी ख़ुसरिन'', अर्थात, सभी इंसान नुक़सान एवं बर्बादी में हैं।
3- ''इल्लल लज़ीना आमनू व अमिलुस़् स़ालिहाति, व तवास़ौ बिल् हक़्क़ि व तवास़ौ बिस़्स़ब्रि'', अर्थात केवल वही लोग घाटे एवं बर्बादी में नहीं हैं जो ईमान लाए, नेक काम किए, सत्य की ओर लोगों को बुलाया एवं इस रास्ते में जो कठिनाइयाँ मिलीं, उन पर धैर्य से काम लिया। वही लोग नुक़सान से बच गए।
उत्तर- सूरा अल-हुमज़ा और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
विनाश हो उस व्यक्ति का, जो कचोके लगाता रहता है और चोट करता रहता है। जिसने धन एकत्र किया और उसे गिन-गिन कर रखा। क्या वह समझता है कि उसका धन उसे संसार में सदा रखेगा? कदापि ऐसा नहीं होगा। वह अवश्य ही 'ह़ुत़मा' में फेंका जायेगा। और तुम क्या जानो कि ह़ुत़मा क्या है? वह अल्लाह की भड़काई हुई अग्नि है। जो दिलों तक जा पहूँचेगी। वह अग्नि, उन पर बन्द कर दी जाएगी। लँबे-लँबे स्तंभों में। [सूरा अल-हुमज़ा: 1-9]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''वैलुल्लि कुल्लि हुमज़तिल लुमज़तिन'', मुसीबत एवं भयंकर अज़ाब है उन लोगों के लिए जो दूसरों की बुराई बयान करते हैं एवं उनमें अवगुण तलाश करते हैं।
2- ''अल्लज़ी जमअ मालव्ं व अद्ददहू'', और उन लोगों के लिए अज़ाब है जिनका उद्देश्य मात्र धन जमा करना एवं उसे गिन कर रखना है, इसके सिवा उनका कोई उद्देश्य नहीं है।
3- ''यहसबु अन्ना मालहु अख़लदहु'' वह समझता है कि उसका माल जो उसने जमा किया है, उसे मौत से बचा लेगा और वह दुनिया में अमर रहेगा।
4- ''कल्ला लयुंबज़न्ना फिल हुत़मति'', अर्थात, मामला वैसा नहीं है, जैसा कि इस जाहिल ने कल्पना की है, निश्चय ही वह ज़रूर जहन्नम की आग में फेंका जाएगा, जो इतनी शक्तिशाली है कि उसमें डाली गई हर चीज़ को तोड़कर रख देगी।
5- ''व मा अदराका मल हुत़मा'', और (ऐ रसूल) आपको क्या पता कि यह कौन सी आग है, जो उसमें डाली गई हर चीज़ को चूर कर देगी?!
6- ''नारुल्लाहिल मू,क़दतु'', यह अल्लाह की सुलगाई हुई आग है।
7- ''अल्लती तत़्त़लिउ अलल अफ़इदति'' अर्थात जो लोगों के शरीरों से होकर दिलों तक पहुँच जाएगी।
8- ''इन्नहा अलैहिम मुअस़दतुन'', अज़ाब पाने वाले उसमें बंद कर दिए जाएंगे।
9- ''फ़ी अमदिम् मुमद्ददतिन'', अर्थातः लंबे-लंबे खंबों से बांध दिए जाएंगे, ताकि वो उससे निकल न पाएं।
उत्तर- सूरा अल-फ़ील और उसकी तफ़सीर:
(अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
क्या तुमने नहीं देखा कि तेरे रब ने हाथी वालों के साथ क्या किया? क्या उसने उनकी चाल को विफल नहीं कर दिया? और उनपर पंक्षियों के दल भेजे। जो उनपर पकी कंकरी के पत्थर फेंक रहे थे। तो उन्हें कर दिया भूसा की तरह)। [सूरा अल-फ़ील: 1-5]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''अलम तरा कैफ़ा फ़अ्ला रब्बुका बि अस़हाबिल फ़ील'', हे रसूल! क्या आप नहीं जानते कि आपके रब ने अब्रहा एवं उसके साथियों, -जो हाथी वालों के नाम से जाने जाते हैं- के साथ क्या किया, जब उन लोगों ने काबा को ध्वस्त करना चाहा?!
2- ''अलम यजअल कैदहुम फ़ी तज़लील'', अर्थात अल्लाह ने उनकी काबा को गिराने की दुष्ट चाल को नाकाम कर दिया, अतः उन्होंने काबा से लोगों को फेरने की जो इच्छा की थी, उसे वो पूरी नहीं कर सके और न ही वे काबा को कोई नुक़सान पहुँचा सके।
3- ''व अरसला अलैहिम त़ैरन अबाबील'', अल्लाह ने उनपर चिड़ियों को झुंड के झुंड भेजा।
4- ''तरमीहिम बिह़िजारतिम मिन सिज्जील'', उन चिड़ियों ने उनपर पकी हुई मिट्टी के पत्थरों की बारिश कर दी।
5- ''फ़जअ्लहुम कअस़फ़िम मअ्कूल'', तो अल्लाह ने उन्हें खाए तथा रौंदे हुए भूसे की तरह कर दिया।
उत्तर- सूरा क़ुरैश एवं उसकी व्याख्या:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
कुरैश के स्वभाव बनाने के कारण। उनके जाड़े तथा गर्मी की यात्रा का स्वभाव बनाने के कारण। उन्हें चाहिये कि इस घर (काबा) के रब की इबादत करें। जिसने उन्हें भूख में खिलाया तथा डर में अमन दिया''। [सूरा क़ुरैश: 1-4]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''लिईलाफ़ि क़ुरैशिन'', इसका अर्थ यह है कि हम ने जो अब्रहा के साथ किया वह क़ुरैश को गर्मी एवं जाड़े की यात्रा के स्वभाव बनाने के लिए किया।
2- ''ईलाफ़िहिम रिह़लतश् शिताइ वस़्स़ैफ़'', जाड़े में यमन की ओर एवं गर्मी में शाम की ओर शांतिपूर्ण यात्रा।
3- ''फ़लयअ्बुदू रब्बा हाज़ल बैत'', (इस उपकार के कारण) उन्हें चाहिए कि केवल इस सम्मानित घर के मालिक अल्लाह की इबादत करें, जिसने उनके लिए इस यात्रा की सुविधा प्रदान की, और उसके साथ किसी को साझी न बनाएं।
4- ''अल्लज़ी अत्अमहुम मिन जूइन व आमनहुम मिन ख़ौफ़िन'', अल्लाह तआला ने अरब के दिलों में काबा एवं वहाँ के रहने वालों का सम्मान बिठा दिया, इससे उन्हें अमन भी प्राप्त हुआ एवं खाने का प्रबंध भी हुआ।
उत्तर- सूरा अल-माऊन और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
(हे नबी!) ''क्या तुमने उसे देखा, जो प्रतिकार (बदले) के दिन को झुठलाता है? यही वह है, जो अनाथ (यतीम) को धक्का देता है। और ग़रीब को भोजन देने पर नहीं उभारता। विनाश है उन नमाज़ियों के लिए, जो अपनी नमाज़ से अचेत हैं। और जो दिखावा (आडंबर) करते हैं। एवं प्रयोग में आने वाली सामान्य चीज़ों को देने से मना कर देते हैं''। [सूरा अल-माउन: 1-7]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''अ,रऐतल्लज़ी युकज़्ज़िबु बिद्दीन'', क्या आपने जाना उसको जो क़यामत के दिन के बदले को नकारता है।
2- ''फ़ज़ालिकल्लज़ी यदुअ्उल यतीम'', वह वही है जो अनाथ को आवश्यकता पूर्ति करने से डाँट कर भगा देता है।
3- ''व ला यहुज़्ज़ु अला त़आमिल मिस्कीनि'', अर्थात वह फ़कीरों, गरीबों को न स्वयं खाना देता है और न ही दूसरों को खाना देने के लिए प्रेरित करता है।
4- ''फ़वैलुल्लिल मुस़ल्लीना'', बर्बादी एवं यातना है उन नमाज़ियों के लिए।
5- ''अल्लज़ीना हुम अन स़लातिहिम साहूना'', जो नमाज़ी अपनी नमाज़ की परवाह नहीं करते हैं और न ही उनके निर्धारित समय का ख़याल करते हैं।
6- ''अल्लज़ीना हुम युराऊना'', जो केवल दिखाने के लिए नमाज़ पढ़ते हैं या नेक काम करते हैं, अपने काम को लेकर अल्लाह के प्रति निष्ठावान नहीं हैं।
7- ''व यमनऊनल माऊन'' और वे ऐसी चीज़ के द्वारा भी दूसरों की मदद करने से कतराते हैं, जिससे मदद करने में कोई नुक़सान नहीं है।
उत्तर- सूरा अल-कौस़र और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
(हे नबी!) ''हमने तुम्हें कौस़र प्रदान किया है। अपने रब के लिये नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो। निःसंदेह तुम्हारा शत्रु ही बे नाम व निशान है''। [सूरा अल-कौस़र: 1-3]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''इन्ना अअ्त़ैनाक्ल-कौस़र'' (ऐ रसूल) हमने आपको ढेर सारी भलाई प्रदान की है, और उसी में से एक जन्नत में कौस़र नामक नहर भी है।
2- ''फ़स़ल्लि लि रब्बिका वन्ह़र'' अतः आप इस नेमत पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हुए केवल उसी के लिए नमाज़ पढ़िए और क़ुर्बानी कीजिए; मुश्रिकों के प्रचलन के विपरीत जो अपनी मूर्तियों की निकटता प्राप्त करने के लिए बलि देते हैं।
3- ''इन्ना शानिअका हुवल अब्तर'', अर्थात, निःसंदेह आपसे द्वेष रखने वाला ही हर भलाई से वंचित और भुलाया हुआ है, जिसे यदि याद भी किया जाता है, तो बुराई के साथ याद किया जाता है।
उत्तर- सूरा अल-काफ़िरून और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
(हे नबी!) ''कह दें किः हे काफ़िरो! मैं उन (मूर्तियों) को नहीं पूजता, जिन्हें तुम पूजते हो। और न तुम उसे पूजते हो, जिसे मैं पूजता हूँ। और न मैं उन मूर्तियों की इबादत करने वाला हूँ, जिनकी तुमने पूजा की है। और न तुम उसे पूजने वाले हो, जिसे मैं पूजता हूँ। तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म तथा मेरे लिए मेरा धर्म है''। [सूरा अल-काफ़िरून: 1-6]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''क़ुल या अय्युहल काफ़िरून'', हे रसूल! आप कह दें किः हे अल्लाह को झुठलाने वालो!
1- ''ला अअ्बुदु मा तअ्बुदून'', कि मैं न अभी और न भविष्य में उन मूर्तियों की उपासना करुँगा जिनकी तुम पूजा करते हो।
3- ''वला अन्तुम अअ्बिदूना मा अअ्बुदु'', और न तुम उसकी इबादत करोगे जिस एक अल्लाह की मैं इबादत करता हूँ।
4- ''वला अना अअ्बिदुम मा अ्बत्तुम'', और न मैं उन मूर्तियों की पूजा करुंगा जिनको तुम पूजते हो।
5- ''वला अन्तुम अअ्बिदूना मा अअ्बुदू'', और न तुम उसकी इबादत करोगे जिस एक अल्लाह की मैं इबादत करता हूँ।
6- ''लकुम दीनुकुम व लिया दीन'', तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म है, जिसको तुमने अपने लिए गढ़ लिया है, और मेरे लिए मेरा धर्म है जिसको अल्लाह ने मुझपर उतारा है।
उत्तर- सूरा अन-नस़्र और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
(हे नबी!) जब अल्लाह की सहायता एवं (मक्का) विजय आ जाए। और आप लोगों को अल्लाह के धर्म में झुंड के झुंड प्रवेश करते हुए देख लें। तो आप अपने रब की महिमा एवं प्रशंसा करने में लग जाएं और उससे क्षमा की प्रार्थना करें, निःसंदेह वह बड़ा क्षमा करने वाला है। [सूरा अन-नस़्र: 1-3]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''इज़ा जाआ नस़रुल्लाहि वलफ़त्हु'', हे नबी! जब तेरे दीन के लिए अल्लाह की मदद एवं शक्ति आ गई, और मक्का विजय हो गया।
2- ''व रऐतन्नासा यदख़ुलूना फ़ी दीनिल्लाहि अफ़वाजा'' और आप लोगों को झुंड पर झुंड अल्लाह के दीन में प्रवेश करते हुए देख रहे हैं।
3- ''फ़सब्बिह़ बिह़म्दि रब्बिका वस्तग़्फ़िरहु इन्नहू काना तव्वाबा'', तो जान लें कि यह उस मिशन की समाप्ति के क़रीब होने का संकेत है, जिसके साथ आप भेजे गए थे। अतः आप मदद और विजय की नेमत पर आभार प्रकट करते हुए, अपने पालनहार की पवित्रता और महिमा का गुणगान करें, और उससे क्षमा याचना करें। निश्चय वह बहुत तौबा क़बूल करने वाला है, अपने बंदों की तौबा क़बूल करता और उन्हें क्षमा कर देता है।
उत्तर- सूरा अल-मसद और उसकी वयाख्या:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
"अबू लहब के दोनों हाथ नाश हो गए, और वह स्वयं भी नाश हो गया! उसका धन तथा जो उसने कमाया उसके काम न आया। वह शीघ्र लावा फेंकती आग में जाएगा। तथा उसकी पत्नी भी, जो ईंधन लिए फिरती है। उसकी गर्दन में मूँज की रस्सी होगी। [सूरा अल-मसद: 1-5]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''तब्बत यदा अबि लहबिंव वतब्बा'', नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चचा अबू लहब के दोनों हाथ उसके बुरे कार्य के कारण बर्बाद हो गए, इसलिए कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कष्ट देता था, तथा उसकी कोशिश अकारत गई।
2- ''मा अग़्ना अन्हु मालुहु वमा कसबा'', अर्थात उसका माल व धन उसके कोई काम न आया, न वह उससे अज़ाब को दूर कर पाया और न उसके लिए दया का कारण बन पाया।
3- ''सयस़ला नारन ज़ाता लहबिन'', वह क़यामत के दिन लपकते हुए शोले मे प्रवेश करेगा।
4- "'वम्,रअ्तुहू हम्मालतल हत़बा'', इस आग में उसकी पत्नी उम्मे जमील भी प्रवेश करेगी, इसलिए कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के रास्ते में कांटे डालकर आपको कष्ट देती थी।
5- ''फ़ीजीदिहा हबलुम् मिम् मसदिन'', अर्थात उसके गले मे मोटी बटी हुई रस्सी होगी जिसके द्वारा वह आग की तरफ घसीटी जाएगी।
उत्तर- सूरा अल-इख़लास़ और उसकी व्याख्या:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
(आप कह दीजिए कि वह अल्लाह एक है। अल्लाह बेनियाज़ (निःस्पृह) है। न उस ने (किसी को) जना है, और न (किसी ने) उसको जना है। और न उसके बराबर कोई है)। [सूरा अल-इख़्लास़ 1-4]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''क़ुल हुवल्लाहु अह़द'', हे अल्लाह के रसूल! आप कह दें कि वही एक मात्र अल्लाह है, उसके अतिरिक्त कोई माबूद नहीं है।
2- ''अल्लाहुस़् स़मद'', अर्थात उसी के पास सृष्टियों की समस्याओं का समाधान है।
3- ''लम यलिद व लम यूलद'', जिसने न किसी को जन्म दिया है और न उसे किसी ने जन्म दिया है"। अतः पवित्र अल्लाह की न कोई संतान है और न माता-पिता।
4- ''व लम यकुल लहु कुफ़ुवन अह़दून'', अर्थात उसकी रचना में उसके जैसा कोई नहीं है।
उत्तर- सूरा अल-फ़लक़ और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
((ऐ नबी!) कह दीजिए कि मैं सुबह के रब की शरण में आता हूँ। उस चीज़ की बुराई से, जो उसने पैदा की है। तथा अंधेरी रात की बुराई से, जब वह छा जाए। तथा गाँठ लगा कर उसमें फूँकने वालियों की बुराई से। तथा ईर्ष्या करने वाले की बुराई से, जब वह ईर्ष्या करे)। [सूरा अल-फ़लक़: 1-5]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''क़ुल अऊज़ु बिरब्बिल फ़लक़ि'', आप कह दें, हे रसूल! मैं स़ुबह के रब को मज़बूती के साथ पकड़ता हूँ एवं उसकी शरण में आता हूँ।
2- ''मिन शर्रि मा ख़लक'', उस चीज़ की बुराई से जो सृष्टियों को कष्ट पहुँचाए।
3- ''व मिन शर्रि ग़ासिक़िन इज़ा वक़ब'', मैं अल्लाह की शरण में आता हूँ उस चीज़ की बुराई से जो रात में प्रकट होते हैं जैसे कि चौपाये, रेंगने वाले जीव या चोर।
4- ''व मिन शर्रिन् नफ़्फ़ास़ाति फ़िल उक़द'', और मैं अल्लाह की पनाह चाहता हूँ उन जादूगरनियों की बुराई से जो गांठों में फ़ूँकती हैं।
5- ''व मिन शर्रि ह़ासिदिन इज़ा हसद'', और मैं अल्लाह की शरण में आता हूँ हर ईर्ष्या, हसद एवं जलन करने वाले की बुराई से जब वह अल्लाह की दी हुई नेमतों पर लोगों से हसद करे, उनसे उनके ख़त्म हो जाने की कामना करे और उनके कष्ट में पड़ जाने की दुआ करे।
उत्तर- सूरा अन-नास और उसकी तफ़सीर:
अल्लाह के नाम से, जो अत्यंत दयावान्, असीम दयालु है।
"(ऐ नबी!) कह दीजिए कि मैं मनुष्यों के रब की शरण में आता हूँ। जो समस्त इन्सानों का स्वामी है। जो सारे लोगों का पूज्य है। भ्रम डालने वाले और छुप जाने वाले की बुराई से। जो लोगों के सीनों में भ्रम डालता है। जो जिन्नों में से है और मनुष्यों में से भी। [सूरा अन-नास: 1-6]
तफ़सीर (व्याख्या):
1- ''क़ुल अऊज़ु बिरब्बिन नासि'', आप कह दें, हे रसूल! मैं लोगों के रब को मज़बूती के साथ पकड़ता हूँ एवं उसकी शरण में आता हूँ।
2- ''मलिकिन नास'' अर्थातः वह लोगों का बादशाह है, वह उनके साथ जो चाहता है करता है। उसके सिवा उनका कोई बादशाह नहीं है।
3- ''इलाहिन नासि'', जो लोगों का सच्चा माबूद है, उसके अतिरिक्त उन लोगों का कोई सत्य पूज्य नहीं है।
4- ''मिन शर्रिल वसवासिल ख़न्नासि'', शैतान की बुराई से जो लोगों को भटकाते हैं।
5- ''अल्लज़ी युवसविसु फ़ी स़ुदूरिन नासि'', लोगों के दिलों में भ्रम डालते हैं।
6- ''मिनल जिन्नति वन्नासि'', अर्थात यह भ्रमित करने वाले इंसानों में से होते हैं एवं जिन्नों में से भी।